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तत्र हानी रुजातंकः पदभ्रंशः खलागमः ।
लग्ने तुंगे महालक्ष्मीस्तूर्यगे च धनागमः || २५३ ||
राज्यसंपदः ।
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तुंगे' जायास्तगे खेटे खे तुंगे
खेटोदयानुमानेन फलवर्षे फलं ॥ इति वर्षफलम् ॥
मतम् || २५४ ||
श्रीहेमशालिनां योग्यमप्रभीकृतभास्करम् । सूक्ष्मेक्षिकया चक्रेोरिभिः शास्त्रमदूषितम् || २५५ || अथ निधानप्रकरणम् ।
एकाकिन्यपि तुयेंशे तुयं पश्यति वा स्थिते । अवश्यं विभवस्तत्र विद्यते कृतनिश्चयः ॥ २५६ ॥ एकाकिन्यपि शीतांशी तुयं पश्यति वा स्थिते । क्षीणे वास्तमिते चापि यं ज्ञेयो निधिगृहे || २५७||
तो मनुष्य को हानि, रोग, भय, स्थानभ्रंश, दुष्टरोग आदि होते है। उच्च का ग्रह यदि लभ में हो तो धनप्राप्ति होती है ।। २५३ ||
यदि ग्रह उच्च का होकर जायागृह हो अथवा स्वोश्वस्थ ग्रह दशम में रहे तो राज्यप्राप्ति होती है। इस प्रकार ग्रहों के उदयमान से वर्ष फल कहना चाहिये || २५४ ||
ऐश्वर्य चाहने वालों के योग्य, अपनी प्रभा से सूर्य की प्रभा को तिरस्कृत करने वाले, तथा शत्रुओं से प्रदूषित इस शास्त्र को श्रीहेमसूरि ने सूक्ष्म विचार से किया ।। २५५||
अकेला भी कोई ग्रह चौथे स्थान में वा उसके नवांश में रहे वा उस स्थान को देखे तो अवश्य ही सम्पत्ति का लाभ होता है ।। २५६ ।। अकेला क्षीण वा अस्त भी चन्द्रमा चतुर्थ स्थान को देखे वा उसमें रहे तो उसके घर में अवश्य निधि होती है || २५७||
1. तुयें तुंगे for तुर्यगे च A, 2 तुंगा for तुंगे A. 3. तुंगं for लुंगे A. 4. फलं वर्ष फले for फलवर्षे फलं A., Bh. 6. प्रतीकृत for प्रभीकृत A.