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________________ (४८) नवमात्प्रथमं याक्दवस्था स्यात्तृतीयका । अर्दपञ्चमसन्धौ हि पूर्वे पूर्व पतन्त्यधः ॥२४३॥ पश्चमानवमं यावतन्वादिषु शुभैग्रह: । जन्ममध्ये च यस्यैवं सौख्यं भवति निश्चितम् ॥२४४॥ उदयात्पश्चमं यावजन्मपत्र्यां शुभग्रहः । वयसि प्रथमे सौख्यं प्रष्टुर्वाच्यं नवं नवम् ॥२४५॥ नवमात्प्रथमं यावत् सर्वभावे शुभप्रहैः । वृद्धत्वेऽपि हि जन्तूना * सर्वसौख्यं प्रवर्तते ॥२४६॥ अवस्थात्रये सौम्याचेद्वाच्यं वयस्त्रये सुखम् । __ यत्र वयसि तुङ्गाश्चेद्राज्यलक्ष्मीप्रदा मताः ॥२४७।। नवम भाव से प्रथम भाव तक तीसरी अवस्था होती है और भाधे की सन्धि से पचम भाव की सन्धि तक पहली अवस्था में परिणत होती है। और उससे नवम भाव की सन्धि तक दूसरी अवस्था, उस से भागे तृतीय अवस्था में परिणाम होती है ।।२४३।। जन्मकाल में पञ्चम से नवम तक तन्वादि भावों में यदि शुभ प्रह हों तो उसे निश्चित ही सुख प्राप्ति होती हैं ।।२४४॥ जन्म लम से पञ्चम तक यदि शुभ ग्रह पड़े हों तो बालक को प्रथम अवस्था में कुछ नए प्रकार का सुख होना चाहिये ॥२४॥ नवम भाव से प्रथम भाव तक यदि सभी भावों में शुभ ग्रह पड़े हो तो वृद्धावस्था में भी सुखप्राप्ति होती है ।।२४६।।। तीनों अवस्थाओं में यदि शुभग्रह हों तो बाल्य, युवा और वृद्ध इन तीनों अवस्थाओं में सुख कहना चाहिये । किन्तु जिस अवस्था में शुभ ग्रह अपनी उस अवस्था में हों तो उस में राज्यलक्ष्मी होती है ॥२४॥ ___1. पूर्वे: पूषः for पूर्वे पूर्वे A. 2. शुभप्रहै: A. 3. जन्ममध्यमयस्पेव for जन्म मध्ये च यस्यैवं A, 4. सम्प्राप्ते for जन्तुनां 5. मषे 6. यस्मिन् for यत्र A.
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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