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सितारा-(सौभाग्य)-महापुरूष की जन्म कुंडली, संगत सभी सितारे। किनारा (उपलब्धि) भाग्योदय की शुभवेला में, मिलते सभी किनारे। ऋ.प.-164. गरल-(त्याज्य), आक्रोश कर देता निर्वीर्य गरल को, सुधा-(ग्राह्य), शांति-एक सुधा का प्याला।
ऋ.पृ.-165. प्यासा (लिप्सा)-सब कुछ पाकर भी मानव मन, रहता प्रतिपल प्यासा। ऋपृ.-165. ध्वज-(राष्ट्रीय गौरव)-विजय-ध्वज फहराओ।
ऋ.पृ.-166. कवच-(सुरक्षा)-अचल अकंप अभेद्य कवच युत शत्रुपक्ष शंकित है। ऋ.पृ.-166. गुफा तमिस्त्रा-(दुर्गम स्थल) गुफा तमिस्त्रा का अतिशय दृढ़, द्वार आज तुम खोलो। ऋ.पृ.-167. माला-एकता-एक सूत्र के आलंबन से, माला मनुज पिरोता। ऋ.पृ.-174. चुम्बक आकर्षण-चुम्बक में अपना आकर्षण, लोहा-खिंचता जाता। ऋ.पृ.-177. दावानल-(विनाश)क्या दावानल में खिलती, है केशर क्यारी? ऋ.पृ.-180. (शांति)-केशर क्यारी
ऋ.पृ.-180. नीड़ (आश्रय)-प्रस्तुत की है मन की पीड़ा, आवश्यक पंछी को नीड़। ऋ.पृ.196. कांटा (जागृति)-चिरजीवी है चुभन जगत में, कांटा जागृति बन जाता।ऋ.पृ.201. कूप मंडूक-(सीमित दायरा) हुआ कूप-मंडूक समान। ऋ.पृ.-255. पतझड़-(दुख)-पतझड़ का अब अंत हुआ है। ऋ.पृ.-276. बसंत-(सुख-देखो कितना रूचिर बसंत।
ऋ.पृ.-276. आग-(क्रोध)-अन्तस्तल में भीषण आग।
ऋ.पृ.-285. दीक्षा-(दृढ़ निश्चय)-दीक्षा लेना शक्य नहीं है। ऋ.पृ.-210.
आचार्य महाप्रज्ञ एक सन्त हैं। संतों की भाषा विशिष्ट प्रतीकों से मण्डित होती है। ये प्रतीक जीव, जगत के संदर्भ में गहन अर्थ देते हैं। 'दर्शन' और 'अध्यात्म' जीवन का एक जटिल पक्ष है जिसकी अभिव्यक्ति हमेशा से प्रतीकों के माध्यम से होती रही है। कबीर, जायसी का साहित्य इसका सबसे बड़ा प्रमाण है। दर्शन और अध्यात्म के क्षेत्र में आचार्य महाप्रज्ञ भी उनके सामानांतर चलते हुए प्रतीत होते हैं। निम्न उदाहरण दार्शनिक मान्यताओं से पुष्ट है :
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