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________________ 'अनासक्ति की प्रवर साधना, बढ़े शुक्ल का जैसे चंद्र, जल से ऊपर जलज निरंतर, रवि रहता नभ में निस्तंद्र। पृ.-298. यहाँ 'जल-आसक्ति', 'जलज-अनासक्ति', तथा 'नभ-आध्यात्मिक' परिवेश के प्रतीक के रूप में प्रयुक्त हुआ है। चरित्र की शुद्धता के लिए 'कमल' उपमान का प्रतीक प्रशंसनीय है। कमल जल में रहते हुए भी उससे ऊपर ही स्थित रहता है। नियोगी का सुंदरी के लिए निम्न लिखित कथन चरित्र की शुद्धता की ओर ही संकेत करता है, जो राजवैभव में पलकर भी विलासभाव से सर्वथा मुक्त है :-- क्षमा करो हे भगिनि देवते! कमलोपम तव अमल चरित्र। ऋ.पृ.-210. साधनात्मक रूप में 'सूर्य' का प्रतीकात्मक प्रयोग कवि ने अत्यधिक किया है। 'सूर्य' आध्यात्मिक जगत में पंरपरा से 'ज्ञान' अथवा 'आलोक' के रूप में प्रयुक्त होता रहा है, जिसकी झलक निम्नलिखित उदाहरणों में देखी जा सकती है :- चिदाकाश में चिन्मय रवि का, व्याप्त हुआ अविराम प्रकाश। ऋ.पृ.-207. एक रश्मि रवि की कर देती. सघन निचिततम तम का नाश। ऋ.प.-207. सूर्यविकासी कमल अमलतम, सूर्योदय के सह उन्मेष। ऋ.पृ.-209. रश्मिजाल की ज्योति प्रचण्ड, खंड हो गया आज अखण्ड। ज्ञेय हुआ जो था अज्ञेय मूर्त-अमूर्त सकल विज्ञेय। ऋ.पृ.-144 कमल कोश से मधुकण मधुकर, और नहीं अब ले सकता। रवि अदृश्य उन्मेष नहीं वह, कमलाकर को दे सकता। ऋ.पृ.-113. उक्त उदाहरण में चित्त-आकाश का। रवि-चैतन्य या ज्ञान का, तम-अज्ञान का, कमल-उत्थान का, कमल कोष आवश्यकताओं की पूर्ति अथवा वैभव के, प्रतीक के रूप में प्रयुक्त हुआ है। लौकिक प्रतीक के रूप में 'सूर्य प्रतीक के साथ अन्य प्रतीकों की छटा देखते ही बनती है – निम्नलिखित उदाहरण में 'सूर्य' चारण के प्रतीक के रूप में भरत का यशोगान करता हुआ प्रतीत होता है :-- 'सूरज की उज्जवल किरणों ने, गीत विजय का गाया।' ऋ.पृ.-163. TARI
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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