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________________ .को वाच्य बनाकर अप्रस्तुत की ओर संकेत किया जाता है। यानी, प्रतीक विधान एक ऐसी अभिव्यक्ति शैली है, जिसमें विचारों और अनुभूतियों को सीधे-सीधे वर्णित न करके उनका संकेत किया जाता और पाठक के मस्तिष्क में अव्याख्यायित प्रतीकों के माध्यम से उनका उद्बोधन कराया जाता है । (21) डॉ. नित्यानंद शर्मा ने प्रतीक को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि अप्रस्तुत, अप्रमेय, अगोचर अथवा अमूर्त का प्रतिनिधित्व करने वाले उस प्रस्तुत या गोचर वस्तु-विधान को प्रतीक कहते हैं, जो देशकाल एवं सांस्कृतिक मान्यताओं के कारण हमारे मन में अपने चिर साहचर्य के कारण किसी तीव्रभाव बोध को जागृत करता है | (22) - प्रतीकों का प्रयोग मानव विकास के साथ ही अति प्राचीन है। वेदों में प्रतीक का उल्लेख मिलता है। सृष्टि में मानव का अस्तित्व जब से प्रकाश में आया तब से ही प्रतीकों में अभिव्यक्ति की शुरूआत हुई । भाषा विकास के पूर्व सांकेतिक चिन्हों अथवा हाव-भाव के प्रतीकों के द्वारा आदिम मानव अपनी भावनाओं को व्यक्त करता था । प्रतीकों का निर्माण मानव की मौलिक विशेषता है। उसकी आत्म चेतना के विकास में प्रतीकों का महत्वपूर्ण योग रहता है । मनुष्य ने अपनी भाषा का विकास प्रतीक शक्ति से ही किया है। शिपली की मान्यता है कि भाषा स्वयं ही एक प्रतीक है। प्रत्येक कला एक तरह की भाषा ही होती है। इसका अर्थ हुआ कि प्रत्येक कला एक प्रतीक होती है | (23) अज्ञेय के अनुसार - 'जन साहित्य सदा से और सबसे अधिक प्रतीकों और अन्योक्तियों के सहारे ही अपना प्रभाव उत्पन्न करता है । यह बीज हम संस्कृत में पाते हैं। वेदों से लेकर वाल्मीकि तक और वाल्मीकि से लेकर कालिदास तक भी । संस्कृत से वह शक्ति अपभ्रंशो और फिर लोक साहित्य में चली गयी । *(24) केदारनाथ सिंह ने भी प्रतीकों की प्राचीनता स्वीकार करते हुए लिखा है कि 'प्रतीकों का प्रयोग उतना ही पुराना है, जितना स्वयं समाज | आदिम मनुष्य ने शताब्दियों पहले अपनी मौलिक एकता की अभिव्यक्ति के लिए प्रतीकों का आविष्कार कर लिया था। आज उनकी वे प्रतीकात्मक अभिव्यक्तियाँ हमारे पास गाथा अथवा पुराण के रूप में सुरक्षित है। वस्तुतः इतिहास के अंधकार युग में वह आदिम मनुष्य ही था, जिसने प्रतीकों की सृष्टि करके भावी मानव सभ्यता की नींव रखी। (25) 51
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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