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खानदान के प्रति ममत्व, अनुराग का भाव उनमें आसानी से देखा जा सकता है युद्धभूमि में भतीजे सूर्ययशा की सुरक्षा को ध्यान में रख कर वे कहते हैं :
उभर रहा है प्रेम नयन में,
कर में है प्रियता का रक्त
शस्त्र बना है कोमल धागा
हो जाओ सहसा अव्यक्त ।
*.ч.-266
भरत से भी बाहुबली युद्ध नहीं करना चाहते हैं, पिता की 'दोहाई' देते हुए वे कहते हैं कि :
अग्रज ! सोचो व्यर्थ हो रहा, कितना कितना नर संहार ।
इसीलिए क्या लिया ऋषभ ने, सत्य अहिंसा का अवतार । ऋ. पृ. - 269.
स्वाभिमान, स्वतंत्रता के प्रतिकूल वे रंचमात्र भी समझौता करने के लिए तत्पर नहीं है इसीलिए 'बहली' देश का प्रत्येक नागरिक 'परतंत्र' शब्द से ही चिढ़ता है :
स्वाधीन चेतना का पलड़ा है भारी, परतंत्र शब्द से चिढ़ता हर नर-नारी
जैसा शासक जनता भी वैसी होती
दीपक से दीपक की प्रगटी है ज्योति ।
ऋ. पृ. 245.
बाहुबली राजनीति और कूटनीति में पण्डित है । एक प्रशासक के रूप में उनमें समत्व भाव है। लिप्सा, लोभ के भाव से वे मुक्त भी हैं । युद्ध में भरत को पराजित करने के पश्चात् चक्रवर्ती बनने की कोई भी लालसा उनमें शेष नहीं, बल्कि वे मानसिक रूप से परिवर्तित हो ऋषभ के प्रभाव से आत्मदर्शन करते है । महाकाव्य में बाहुबली का प्रभावशाली व्यक्तित्व सहनायक के रूप में उभरा । पाठक के मन पर भरत की तुलना में बाहुबली का प्रभाव अधिक पड़ता है। बाहुबली प्रसंग से ही कथा को एक अद्भुत गति भी मिलती है ।
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