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पौराणिक प्रसंग : महापुरूष चरित्र विषयक बिम्ब
जैन परंपरा के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव एक वैदिक पौराणिक पुरूष हैं। वे क्षात्रधर्म के प्रवर्तक और क्षत्रिय जाति में श्रेष्ठतम् इक्ष्वाकु वंश के प्रथम व सर्वश्रेष्ठ सम्राट थे। (ऋषभं पार्थिव श्रेष्ठं सर्व क्षत्रस्य पूजितम् । ब्रह्माण्ड पुराण 2.14, लिंग पुराण 47.2) श्रीमद्भागवत् में इस बात का उल्लेख मिलता है कि वे आध्यात्मिक विद्या के उपदेशक थे। आदि पुराण में उन्हें ब्रह्म स्वरूप तथा शिवपुराण में शिव का आदि तीर्थकर के रूप में अवतार लेने का वर्णन है। भागवत् पुराण में ऋषभदेव के अतिरिक्त नाभिराज, मरूदेवा, भरत, बाहुबली का वर्णन भी मिलता है। इस प्रकार आचार्य महाप्रज्ञ ने पुराण प्रसिद्ध महनीय पात्रों का चयन कर जीवन के लौकिक एवं अलौकिक पक्षों को उद्घाटित किया है। बिम्ब की दृष्टि से कवि ने अनेक पौराणिक कथाओं का समायोजन किया है। पुराणों में वर्णित कल्पतरू सभी कामनाओं की पूर्ति के लिए प्रयुक्त होते रहे हैं। संजीवनी शक्ति से परिपूर्ण कल्पवृक्षों को युगलों की भोजन, वस्त्र, मकान एवं अन्य आवश्यकताओं की सहज पूर्ति के कारक के रूप में चित्रित किया गया है -
'चित्र' से मिलता है आहार, यही है जीवन का आधार वस्त्र का कारक वृक्ष 'अनग्न', देह में वल्कल है परिलग्न। 'ग' के पत्र पात्र उपयुक्त, वास हित 'गेहाकार' प्रयुक्त । उष्णता देते 'ज्योतिष-अंग', अलंकरणों की कृति 'मणि-अंग' ज्योति विकिरण करते 'दीपांग', वाद्य कलरव करते 'त्रुटितांग' माल्यमय पुष्पस्त्रवण 'चित्रांग', स्त्रोत मधुरस का प्रवर 'मदांग' ऋ.पृ. 9
पौराणिक मान्यता के अनुसार सम्पूर्ण मानव जाति मनु की संतान है, जिसका प्रयोग युगलों के संदर्भ में भी किया गया है -
बन्धुद्वय ने, भगिनी द्वय ने, विद्या का विस्तार किया कर्मभूमि के मनुपुत्रों को, जीवन का आधार दिया। ऋ.पृ. 68
देवराज इंद्र का वर्णन पुराणों में मिलता है। पुराणों में इस बात के भी प्रमाण मिलते हैं कि देववासियों का सम्बन्ध पृथ्वी से रहा है। ब्रह्म स्वरूप ऋषभ के
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