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क्रिया का बिम्ब भी कवि ने प्रस्तुत किया है
गिरि शिखर से निकल निर्झर, त्वरित गति से चल रहा, पथ रूका चट्टान से संघर्ष चिर चलता रहा ।
ऋ. पृ. 96
कवि ने 'निर्झर' को मुखर दर्शाकर जीवन के प्रति सच्चा संदेश देने वाले उपदेशक के रूप में भी व्यक्त किया है जैसे निर्झर संदेश दे रहा हो कि यह शरीर 'नश्वर' है और आत्मा अनश्वर -
देह जनमता, मरता है वह, अमृत अजन्मा सदा विदेह
सुनो सुनो तुम कान ! सजग हो, निर्झर का नूतन संदेश। ऋ. पृ. 157
'कथा वाचक के रूप में भी निर्झर का मानवीकरण परक बिम्ब प्रस्तुत किया गया है । निरन्तर प्रवहमान निर्झर अपनी गति से मानव समाज के समक्ष प्रगति की कहानी कहता हुआ प्रतीत हो रहा है
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सतत प्रवाहित निर्झर का जल, प्रगति कहानी कहता ।
ऋ. पृ. 169 पृथ्वी, अंतरिक्ष, आकाश का भी मानवीकरण परक बिम्ब कवि ने प्रस्तुत किया है । सिंहनाद युद्ध में बाहुबली के उच्च स्वर में भरत का स्वर तिरोहित हो जाने पर अंतरिक्ष ने जहाँ बाहुबली के विजय की घोषणा की, वहीं धरती और आसमान भी स्तब्ध रह गए । यहाँ धरती, अंतरिक्ष और आकाश को मानव के पूर्ण व्यक्तित्व के रूप में चित्रित किया गया है
अंतरिक्ष ने कहा बाहुबली, विजयी, जय लघुता को लब्ध
भरत श्रेष्ठ पर बल-श्रेष्ठ लघु, धरणि अंबर सब ही स्तब्ध । ऋ. पृ. 278
'विटपि' और 'पवन को पूर्ण मानव के रूप में चित्रित कर कवि ने रति विषयक वियोग भाव की भी अभिव्यंजना की है
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मंद-मंद समीरण सुरभित, कर-कर विटपि-स्पर्श आगे बढ़ता लगता तरू को, इष्ट वियोग प्रकर्ष
कण-कण दृष्ट साकार, शाखा शाखा कम्प विकार ।
ऋ.पृ. 79 कवि ने सशंकित मानव के रूप में सूर्य की किरणों तथा आतंकी के रूप
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