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कवि ने प्रकृति को गायक, वादक के साथ ही साथ लेखक के रूप में भी बिम्बित किया हैं। अयोध्या के शकट मुख उद्यान में चैत्यवृक्ष की छाया में विराजमान ऋषभ को देखकर समूची प्रकृति रमणीय हो जाती है, संपूर्ण वातावरण शांत हो जाता है। चारों ओर एक नवीन दृश्य की आमा दिखाई देने लगती है। इन विशिष्टताओं से प्रभावित ऐसा लगता है जैसे प्रकृति स्वमेव नवीन किन्तु विशिष्ट रचना का आलेखन कर रही हो -
चैत्य वृक्ष तट तरू कमनीय, शाखा पल्लव अति रमणीय । ऋ.पृ. 140 छाया में प्रभु को स्थित देख, लिखा प्रकृति ने नव अभिलेख। ऋ.पृ. 140
भरत बाहुबली की सेना के प्रबलतम युद्ध को बहुत समय तक सूर्य भी नहीं देख सका, वह अस्ताचल पर जाकर नियति का प्रतिनिधित्व करते हए पारिवारिक विनाश लीला का आलेखन करने लगा -
दोनों में संघर्ष प्रबलतम, नहीं सका दिनमणी भी देख। ऋ.पृ. 258 अस्ताचल के अंचल पर जा, लिखा नियति का नव आलेख। ऋ.प. 258
आकाश के मानवीकरण के संदर्भ में भी इस बिम्ब की नियोजन किया गया है। जीवन की अनित्यता तथा आत्मशक्ति की नित्यता का ज्ञान होने पर राग-द्वेष से मुक्त भरत आनन्दित मन से पिता के श्री चरणों में उपस्थित हो अपने भाइयों से मिले। भ्रातृ मिलन के इस अद्भुत दृश्य का साक्षी आकाश जैसे भ्रातृ मिलन के इस पावन क्षण को मौन रूप से लिपिबद्ध कर लिया हो -
आदीश्वर के चरण-कमल की, सेवा में पहुँच सानंद, भ्रातृ-मिलन के वे क्षण अद्भुत, लिखा गगन ने लेख अमंद। ऋ.पृ. 297
कवि ने पग-पग पर प्रकृति को चेतनमयी बताकर मानवीय चेतना के असर कारक बिम्ब निर्मित किए हैं। बालक ऋषभ की मृदु-मुस्कान देखकर पूर्ण विकसित फूलों में भी प्रतिस्पर्धा का भाव जन्म लेने लगता है -
मृदु मुस्कान निहार सुमन में, प्रतिस्पर्धा का भाव जगा । ऋ.पृ. 37 'निर्झर' के द्वारा प्रगति मार्ग पर संघर्ष करते हुए आगे बढ़ने की मानवीय
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