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________________ इतनी नदियों का जल लेकर, नहीं हुआ यह सागर तृप्त दर्प बढ़ा है पा पराग रस, मधुकर आज हुआ है दृप्त। ऋ.पृ. 193 इस प्रकार ऋषभायण में व्यंजना शब्द शक्ति की सफल अभिव्यक्ति का विस्तार देखा जा सकता है। --00-- 4-5. मुहावरे तथा लोकोक्तियाँ - मुहावरे किसी विशेष भाषा में प्रचलित वह पद-बन्ध या कथन-बन्ध है जिसमें भाव वहन तथा मानव जाति के अनुभवों को मूर्त स्वरूप प्रदान करने की अद्भुत क्षमता होती है, इनके प्रयोग से कथन चुटीला, मर्मस्पर्शी एवं व्यंजक बनता है। वस्तुतः मुहावरे व लोकेक्तियाँ किसी घटना अथवा उपदेशात्मक रूप में हमारे सामने आती हैं। जनसाधारण के बीच इनका जन्म होने के कारण इनका स्वरूप संवेदनात्मक होता है, इसीलिए जनमानस पर इनका अत्यधिक प्रभाव भी पड़ता है। प्रसंगानुकूल प्रयुक्त मुहावरे व लोकोक्तियाँ घटना या मूलकथा का स्मरण दिलाकर वर्णन में चमत्कार व गोचरता पैदा करते हैं। महावरे व लोकोक्तियों से बिम्बों का निर्माण उनकी लाक्षणिक क्षमता के कारण होता है, जिससे ही ये बिम्ब विधान के सशक्त साधन माने गये हैं। लोकोक्ति और मुहावरों में बिम्ब क्षमता को देखते हुए डॉ. दास गुप्ता ने लिखा है - 'शब्द समष्टि के भीतर इस चित्र धर्म को साधारणतः नाम मिला है – मुहावरा या लोकोक्ति। भाषा में जो प्रयोग मुहावरों के नाम से परिचित है, उनमें अधिकांश का ही विश्लेषण करने पर हम देख सकेंगे कि उनमें भाषा का यह चित्र धर्म ही है। हम एक प्रयत्न द्वारा दो कार्य सिद्ध नहीं करते, एक ढेले से दो चिड़ियों का शिकार करते हैं। हम अपना कार्य आप नहीं करते ‘अपने चर्खे में तेल देते हैं' । ........ महामूर्ख व्यक्ति को हम पुकारते हैं ‘काठ का उल्लू'। अपात्र व्यक्ति के निकट निष्फल निवेदन नहीं करते 'अरण्य रोदन' करते हैं। हम मर्म पीड़ा नहीं पहुँचाते 'कलेजा छेद देते हैं। .......... तिल को ताड़ करना, समुद्र में [313]
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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