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सामाजिक जीवन के लिए आवश्यक कुम्भकार, लोहकार, स्थपित, तंतुवाय, क्षौर कर्म श्रेणी के प्रवर्तन तथा उसके उत्पाद्य का बिम्बांकन भी अभिघा के सहारे
किया गया है -
कुंभकार की श्रेणी ने, आहार-प्रेय के पात्र दिए लोहकार की श्रेणी ने, अयजात कुंदाली-दात्र दिए
और स्थपति की श्रेणी ने, गृह-रचना का संकल्प लिया
भोगभूमि को कर्मभूमि का, नव निर्मित परिधान दिया
तंतुवाय की श्रेणी ने, आच्छादनकारी वस्त्र दिए
क्षौर कर्म की श्रेणी ने, नख-कन्तुल के संस्कार किए ।
ऋ.पृ. 63
पारिवारिक, सामाजिक जीवन में प्रवेश करने के पश्चात सम्बन्धों के
मोहबन्धों का बिम्ब भी अभिधा के द्वारा प्रस्तुत किया गया है -
मम माता, मम पिता सहोदर, मेरी पत्नी, मेरा पुत्र मेरा घर है, मेरा धन है, सघन हुआ ममता का सूत्र । ममता ने परिवार, नाम की, संस्था को आकार दिया ममता ही परिवार, उसी ने, क्रूर वृत्ति का विलय किया।
ऋ.पृ. 68
ऋषभ द्वारा राज्य त्याग के अवसर पर जन समाज की भावुकता, विहवलता
का सहज एवं प्रभावशाली चित्रण अभिधा के कारण ही हो सका है -
चिर सुचिर परिचित विनीता, अपरिचित अब हो रही लग रहा था आज जनता, धैर्य अपना खो रही जा रहे हो नाथ। हमको, छोड़कर अज्ञात में भेद हम कर पा रहे थे, रात और प्रभात में चरण सन्निधि प्राप्त कर प्रभु ! प्रात जैसी रात भी दूर पा प्रभु-चरण-युग को, रात जैसा प्रात भी। था हमें विश्वास पल-पल, प्रभु हमारे साथ हैं क्यों हमें चिन्ता अभयदय, सदय सिर पर हाथ है।
ऋ.पृ. 103
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