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उपयोग किया गया है। ऋषभ भरत को संबोध देते हुए कहते हैं यदि शासक इंद्रियों के वशीभूत होता है तो उसका शासन वैसे ही असफल व निरर्थक होता है जैसे अंकविहीन शून्य । यही नहीं क्रूर राजा का शासन वैसा ही होता है जैसे मातृ स्नेह से वंचित पुत्र। सुव्यवस्थित शासन संवेदनशील पुत्र के समान होता है -
अजितेन्द्रिय शासक विफल, अंकहीन ज्यों शून्य। क्रूर नृपति का शासन-सूत्र, मात् स्नेह से विरहित पुत्र। शासन सहसंवेदन पूत, शांतिदूत बनता साकूत ।
ऋ.पृ. 88
सचिव की मंत्रणा से सुचालित शासन तंत्र के लिए मंगलदायी श्रीयंत्र का बिम्ब नियोजित किया गया है -
सचिव सुचालित शासन-तंत्र, जनपद का पावनतम मंत्र। मिल जाता मंगल श्रीयंत्र, सदा सुरक्षित और स्वतंत्र। ऋ.पृ. 89
जनप्रतिनिधि द्वारा विधाता, धाता और ओंकार अमूर्त से ऋषभ को संबोधित किया गया है -
तुम विधाता और धाता, सृष्टि के ओंकार हो। और सामाजिक व्यवस्था, के तुम्ही आधार हो।
ऋ.पृ. 98 हस्तिनापुर में ऋषभ को देखकर जन-मन अपने जीवन को धन्य समझ रहे हैं, उन्हें लगता है कि सभी चिंताओं का शमन करने के लिए चिंतामणि के रूप में स्वयं ऋषभ देव प्रकट हो गए हैं।
धन्य हैं हम रत्न, चिंतामणि अहो प्रत्यक्ष है।
ऋ.पृ. 127
स्वप्न के आधार पर श्रेयांस की स्मृति के लिए भी अमूर्त बिम्ब नियोजित है। श्रेयांस जब आहार के लिए चक्रमण कर रहे ऋषभ को देखते हैं, तब उन्हें अपने पूर्व जन्म की स्मृति हो जाती है। पूर्व जन्म की इस अमूर्त स्थिति को शरदकालीन नीरज से उद्घाटित किया गया है -
स्मृति उतर आई अमित, आलोकमय दिग्गज हुआ। जन्म का संज्ञान पाकर, शरद का नीरज हआ ।
ऋ.पृ. 129
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