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नीड़ का निर्माण करने, शकुनि तृण को चुन रहा। मंत्रपाठी सिद्धि पाने, मंत्र जैसे गुन रहा।
ऋ.पृ. 130 आकांक्षा अमूर्तभाव है जिसे चीवर के रूप में मूर्तता प्रदान की गयी है। वहीं दूसरी ओर 'आकांक्षा' के मुखौटे को आकाशं के समान विस्तृत बताकर उसे और भी जटिल बना दिया गया है, क्योंकि खाली आकाश शून्यवत है, अमूर्त है। इस प्रकार निम्न उदाहरण में जहाँ 'आकांक्षा' की अभिव्यक्ति 'चीवर' से कर उसे मूर्त्तमान किया गया है, वहीं दूसरी ओर आकाश से भी उपमित किया गया है जो स्वयं में अमूर्त है -
है विश्व विजय का मीठा-मीठा सपना, आकांक्षा का चीवर कब होना अपना ? आवश्यकता का जग है अतिशय छोटा, आकांक्षा का आकाश-समान मुखौटा
ऋ.पृ. 179
मन की उलझन एवं संचेतना अमूर्त के लिए क्रमशः सघन तिमिर एवं 'दीप' का बिम्ब नियोजित किया गया है। चक्रवर्ती अभिषेक समारोह में बन्धु-बांधवों की अनुपस्थिति भरत को अति कष्टप्रद प्रतीत होती है। इसीलिए वे अपने भाईयों के पास दूत भेजते हैं। भरत इस बात को जानते है कि जिस प्रकार दीपक की लौ संघन तिमिर को बेपर्दा कर देती है वैसे ही दत के संदेश से भाईयों के मन की गांठ भी खुल जाएगी -
लगता है बांधव के मन में, उलझ रही है कोई ग्रंथि। अनुशासित कर दूत वर्ग को, भेजा नृप ने बंधु समीप। सघन तिमिर का चीरहरण तो, कर सकता है केवल दीप। ऋ.पृ. 192
निर्मल चरित्र की अमूर्तता को 'कमल' उपमान से बिम्बायित किया गया है। नियोगी संयम मय जीवन व्यतीत कर रही सुन्दरी से कहता है -
क्षमा करो हे भगिनि देवते ! कमलोपम तव अमल चरित्र।
ऋ.पृ. 210
'सागर' और 'नौका' के मूर्त दृश्य से क्रमशः 'संसार' एवं 'सहिष्णुता' की अमूर्तता को व्यक्त किया गया है। ब्राह्मी और सुन्दरी साधना में भी अहम् के वशीभूत
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