________________
4.
स्पृहा
ऋषभायण में विविध प्रसंगों में स्पृहा भाव के पर्याप्त बिम्ब मिलते हैं। ऋषभ के पौरूष एवं प्रतिभा से प्रभावित युगलों की हार्दिक इच्छा है कि वे प्रथम राजा के दायित्व का निर्वाह करते हुए उनके सभी संकटों को दूर करें। यहां संकट मोचन बिम्ब से ऋषभ के अवतारी स्वरूप को व्यक्त किया गया है।
बन राजा सबका संकट दूर करो हे ! संकट-मोचन! जन-जन का पीर हरो है !
ऋ.पृ. 53
इच्छा विकास व नवनिर्माण को नवीन दिशा देती है, यहाँ दुग्ध के विविध परिवर्तनों के बिम्ब से सईच्छा की अभिव्यक्त हुयी है -
इच्छा से इच्छा बढ़ती है, इच्छा का अपना है चक्र | दूध जन्म देता है दधि को, दधि से फिर बनता है तक्र।।
ऋ.पृ. 62
ऋषभ द्वारा संयम पथ पर प्रस्थान करने की घोषणा से व्यथित जन समाज उनसे विलग नहीं रहना चाहता। वे सभी तो उस सृष्टि का स्वागत करना चाहते हैं जिसमें राजा स्वयं ऋषभदेव हों -
ऋषभ प्रभु राजा रहे, उस सृष्टि का है स्वागतं । ऋषभ राजा जो न हो, वह सृष्टिपर्व अनागतं ।।
ऋ.पृ. 95
ऋषभ के साथ त्याग पथ पर चलने के लिए तत्पर कच्छ महाकच्छ की इच्छाओं का अंकन 'मधुकर' और 'कमल' के बिम्ब से किया गया है। कच्छ महाकच्छ कहते हैं कि जिस प्रकार भ्रमर कमल के पराग का पान तन्मयता से करता है उसी प्रकार हम भी प्रभु के कमलवत् चरणों के पराग का रसपान करेंगे।
मधुकर बन लेंगे सदा, प्रभु चरणाब्ज पराग। श्रद्धामय अनुराग से, विकसित विशद विराग।।
ऋ.पृ. 100 अयोध्या से प्रस्थान के समय बाहुबली और भरत पिता श्री से बहुत कुछ कहना चाहते हैं, पर कह नहीं पाते। जहां भरत को ऋषभ के व्यक्तित्व में सागर के समान अत्यधिक गहराई दिखाई देती है वहीं बाहुबली को कोई मार्ग नहीं सूझता।
12671