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से अर्द्धशतक युगल जन्म लिए जिनमें प्रथम युगल भरत और ब्राह्मी तथा शेष उनपचास युगल नर शिशु थे। सुनन्दा 'बाहुबली' और 'सुंदरी' की माता बनी। इस प्रकार समाज में दादा-पोता का नया सम्बन्ध विकसित हुआ।
कालचक्र अबाधित गति से घूम रहा था, युगलों के स्वभाव भी बदल रहे थे। कलह, लोभ, आवेश, क्रोध आदि मनोवृत्तियाँ दृढ़ हो रही थी। कल्पवृक्ष से आवश्यकताएँ पूरी नहीं हो पा रही थी, जिस कारण कुलकर नाभि ने राजतंत्र की स्थापना कर 'ऋषभ' को युगलों का पहला राजा बनाया जिससे राजतंत्र व्यवस्था का सूत्रपात हुआ। राज्य की उत्पत्ति शासक और शासित के रूप को प्रकट करती है, इस संदर्भ में महाप्रज्ञ की प्रस्तुत पंक्तियां सटीक हैं :
यदि कल्पवृक्ष कार्पण्य नहीं दिखलाते
मानव-मानव यदि बाँट-बाँट कर खाते
तो राजतंत्र बल से आरोपित शासन
न बिछा पाता मानव के सिर पर आसन।
ऋ.पृ.-54.
'राज्य विकास' की प्रथम कड़ी में भोजन एवं नगर निर्माण की व्यवस्था हुयी। देवेन्द्र के निर्देश से कुबेर द्वारा निर्मित नगर में युगलों का प्रवेश हुआ। तरू की गोद में विश्राम करने वाले मानव ने चारदीवारी दुनियाँ में स्वयं को सीमित कर लिया। संयोग से जंगल में अग्नि अवतरण के साथ ही भोजन पकाने का मार्ग प्रशस्त हुआ। उक्त स्थितियों को तृतीय सर्ग में उद्घाटित किया गया है।
. चौथा सर्ग 'समाज रचना' से संबंधित है। समाज रचना का दायित्व गुरूतर है। अविकसित समाज को विकास के पथ पर अग्रसर करना साधारण काम नहीं है। अतीन्द्रिय ज्ञान से मण्डित ऋषभ ने समाज रचना एवं दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु कुंभकार, लोहकार, स्थपित, तन्तुवाय और क्षौर कर्म (नापित) श्रेणी का विकास किया, जिससे क्रमशः आहार, पेयपात्र, खेती के यन्त्र, गृह निर्माण, वस्त्र निर्माण तथा नख-केश कर्तन की समस्या समाप्त हुयी। युगल अकर्म युग से कर्मयुग में प्रवेश कर रहे थे। ऋषभ ने भोजन के लिए 'कृषि', सुरक्षा के लिए 'असि' तथा शिक्षा के लिए 'मसि' विधा का विकास किया। एक
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