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संशिलष्ट ऐन्द्रिक बिम्ब
संशिलष्ट का आशय है जुड़ा हुआ, मिला हुआ अथवा मिश्रित। इसमें अनेक बिम्ब परस्पर सम्बद्ध रहते हैं। मिश्र तथा समाकलित बिम्ब संशिलष्ट होते हैं।11) कुछ आलोचकों ने इसे खण्डित(12) बिम्ब की संज्ञा दी है। तो कुछ ने इसे सावयव बिम्ब(13) अंतर्गत माना है। वस्तुतः कविता में कवि द्वारा विविध संवेदनाओं के मूर्तिकरण हेतु मिश्रित रूप में अनेक बिम्बों की उपस्थापना की जाती है, जो अपना ऐन्द्रिय परक अर्थ देते हैं। संवेदनाओं को जागृत करने में दृश्य, स्पर्य, गंध, आस्वाद एवं शब्द परक बिम्बों की अहम् भूमिका होती है। कवि इन संवेदनाओं में जितनी गहरी डूबकी लगाता है उतना ही अधिक वह संगत बिम्ब प्रस्तुत करता है। अनेक वर्गों में विभक्त सभी बिम्बों का तिरोभाव किसी न किसी रूप में ऐन्द्रिय परक बिम्बों में होता है। प्रयोग एवं ऐन्द्रिय, स्वभाव के अनुरूप यदि कोई बिम्ब कहीं दृश्यता की अनुभूति कराता है तो अन्य स्थल पर स्पर्शबोध अथवा स्वादेन्द्रिय संवेदना को प्रगाढ़ करता है।
ऋषभायण में वसंत, युद्ध, मनोभाव, आदि के परिप्रेक्ष्य में विविध बिम्ब निर्मित हुए हैं। वसंत वर्णन के अंतर्गत प्रकृति जन्य मनोरम बिम्ब गंध, दृश्य एवं आस्वाद्य संवेदना का मिलाजुला रूप प्रस्तुत करते हैं, जैसे -
सुरभित उपवन का हर कोना, विहसित पुष्प पराग, राग झांकता पूर्ण युवा बन, मीलितनयन विराग, आया मधुमय वर मधुमास, कण-कण मुखर वसंत विलास। ऋ.पृ. 77
उक्त उदाहरण में सुरभित उपवन, विहँसित पुष्पराग, राग का पूर्ण युवा के रूप में झाँकने की स्थिति तथा मधुमय मधुमास, गंध, दृश्य एवं आस्वाद्य संवेदना को अनुभूति गम्य बनाते हैं।
वसंत का अमित प्रभाव भी संश्लिष्ट रूप में व्यक्त हुआ है। वसंत के कारण सुखं सरिता मे आकंठ निमग्न जनमानस का प्रेमानन्द, मधुमंथर गति से प्रवहमान पवन का लास्य और प्रस्फुटित पुष्पों से हास्य की व्यंजना प्राकृतिक पटल पर मानवीय क्रियाओं का संश्लिष्ट चित्र निर्मित करती है -
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