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भरत को दिए गए 'राजनीति-संबोध' में ऋषभ ने दमनकारी शासन को हेय बताते हुए उसे 'अधः सुवास' के रूप में निरूपति कर उसकी निन्दा की है
निग्रह कंटक अधः सुवास वह शासन होता आश्वास ।
ऋ.पृ. 88
शिक्षा-दीक्षा के ज्ञानमय भावभूमि के विस्तार को भी कवि द्वारा गन्धमयता प्रदान की गयी है। ऋषभ ने अपनी दोनों पुत्रियों ब्राह्मी और सुंदरी को क्रमशः लिपिन्यास एवं गणित के ज्ञान से मण्डित कर नारी को शिक्षा के क्षेत्र में पहला स्थान दिया। इस प्रकार उनके कोमल हृदयों में लिपि एवं गणित रूपी सुवासित पुष्प का विकास हुआ -
लिपि - गणित की शिक्षा में, नारी को पहला स्थान मिला, कोमलतम अन्तर में कोई, परिमल परिवृत्त पुष्प खिला। ऋ.पृ. 67
उक्त गंध बिम्बों के अलावा परोक्ष अनुभव से सम्बन्धित स्वप्न में गंध बिम्बों का भी उद्घाटन माँ मरूदेवा के स्वप्न के अन्तर्गत किया गया है। माँ मरूदेवा ऋषभ जन्म के पूर्व स्वप्न में चौदह मंगलकारी वस्तुओं को देखती हैं जिसमें पुष्पमाला, कुम्भ एवं पद्म सरोवर भी हैं, जिसकी गंधमयता चित्ताकर्षक एवं सुरूचिपूर्ण है -
सुरभि-सुमन से गुंफित माला, आलम्बन बनने आई।
ऋ.पू. 32
परिमल रसमय शीतल जलभृत, पूर्णकलश यह अभिनव है
ऋ.पृ. 33
उक्त गंधमय बिम्बों के आधार पर कहा जा सकता है कि आचार्य श्री ने परंपरानुसार पुष्पों की गंधों का ही अधिकतर बिम्बांकन किया है। प्रकृति का रूप उन्हें विशेषतः आकर्षित किया है, इसलिए महाकाव्य में उन्हें प्रमुखता से स्थान भी मिला है। गंधों के अन्य कारकों का अभाव सा ही दिखाई देता है। फिर भी गंधों की एकरसता का अपना आनंद है, जिससे इंकार नहीं किया जा सकता ।
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