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________________ प्रिय सम्बन्धों की अभिव्यक्ति भी कवि ने सुवासित सुमन से की है। सांसारिक दृष्टि से संबंधों में खटास आना कोई आश्चर्य की बात नहीं है, उस खटास का निवारण मधुर सम्भाषण से आसानी से किया जा सकता है। युद्ध तो अंतिम विकल्प है, प्राथमिक नहीं। भरत का यह चिंतन सम्बन्धों की प्रियता को लेकर है। मधुर सम्बन्ध रूपी तरू पर भातृत्व रूपी सुरभि सुमन तभी खिल सकता है, जब उसमें मधुरता हो, प्रेम हो। समर चरम विकल्प उसको, स्थान यदि पहला मिले। तो मधुर सम्बन्ध तरू पर, सुरभि-सुम कैसे खिले ? ऋ.पृ. 227 युद्ध की वितृष्णा से बाहुबली तपस्या का मार्ग चुनते हैं स्थाणुवत् वे स्थितप्रज्ञ हो जाते हैं, लताएँ उनके गात्र के अवलम्ब से अपना पूर्ण विकास कर उन्हें आवृत्त कर देती हैं, जिससे उनकी केश राशि और अंग-अंग केशर की क्यारी की भांति संपूर्ण क्षेत्र को सुगंधमय कर देती है। यहाँ 'केशर की सी क्यारी' पाठक को सहज ही गन्धानुभूति करा देती है - आच्छन्न हरित से देह हुई है सारी कच उत्तमांग के केशर की सी क्यारी। ऋ.पृ. 292 राजनीतिक संदर्भ में गंधमय बिम्बों का प्रयोग अनूठा है। भरत दिग्विजय कर नगर में प्रवेश करते हैं, किन्तु चक्र नगर के बाहर ही स्थिर हो जाता हैं। मंत्री इस बात को जानता है कि बाहुबली के अविजित होने के कारण ही भरत का दिग्विजय का सपना अधूरा ही है। भरत इसका कारण जानना चाहते है किन्तु मंत्री के मौन रहने पर वे कहते है कि यदि समस्या के क्षणों में सचिव ही मंत्रणा के कार्य से सन्यास ले ले तो वह रोहित वृक्ष पर खिले उस फूल की भांति है जिसकी सुरभि वातावरण में तो फैलती है, किन्तु उसकी उपलब्धि नहीं हो पाती । यहाँ मंत्री के चातुर्य पूर्ण आश्वासन को 'रोहितक' के फूल की सुवास से व्यक्त किया गया है - यदि समस्या के क्षणों में, सचिव ही सन्यास ले, रोहितक का फूल बनकर, सुरभि का आश्वास दे। ऋ.पृ. 222 11931
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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