________________ ..' को 'हरी भरी बेल' के बिम्ब से व्यक्त किया गया है। युगलों का प्रारम्भिक जीवन शिक्षा दीक्षा से अछूता है, पठन, पाठन, भाषा, शब्दाकोष का रंचमात्र भी विकास नहीं हुआ है। इन सब के विकास की सम्भावनाएँ हैं किन्तु कुशल मार्गदर्शन का अभाव है। जिस प्रकार दिवस में नक्षत्रों की स्थिति आसमान में होती है किंतु वे दिखाई नहीं देते, उसी प्रकार से भाषा विकास की संभावनाएँ होते हुए भी उसके अस्तित्व का प्रकाशन नहीं हो पा रहा है। पठन, पाठन व भाषा के इस अविकास की स्थिति को दिवस में तिरोहित 'नक्षत्र' के बिम्ब से प्रस्तुत किया गया है : पठन-पाठन काव्य भाषा, शब्दकोश वितर्कणा। सब तिरोहित हैं, दिवस में, ज्यों नखत की अर्पणा। ऋ. पृ.-10. दृश्य बिम्बों के उद्घाटन में कवि ने 'चीरहरण' बिम्ब का सार्थक उपयोग किया है। कल्पवृक्ष जब युगलों की आवश्यकता पूर्ण करने में कार्पण्य करने लगे, तब उनमें संग्रह की प्रवृत्ति का जन्म होने लगा जिससे समाज में कलह बढ़ने लगा। यहाँ कलहरूपी 'तिमिर' के विनाश एवं विकास रूपी प्रकाश की स्थापना के संबंध में 'चीरहरण' बिम्ब का प्रयोग सार्थक है। अंधकार का शमन धीरे-धीरे होता है, एक बारगी नहीं। चीरहरण की एक-एक क्रिया अंधकार को निर्वस्त्र कर प्रकाश का संकेत देती है। (1) (ऋषभायण पृ. 20) 'दिनकर' उपमान का बिम्ब विविध रूपों में प्रस्तुत किया गया है। सूर्य निष्पक्ष रूप से संपूर्ण सृष्टि को आलोकित करता है, उसमें कहीं भी किसी क्षेत्र को अधिक अथवा किसी क्षेत्र को कम प्रकाशित करने का भाव नहीं होता। समाज व्यवस्था को सुचारू रूप से संचालित 'निष्पक्ष' कुलकर ही कर सकता है। यहाँ निष्पक्ष रूप से कुलकर के कार्य संपादन को 'दिनकर' के बिम्ब से प्रस्तुत किया गया है : हो पक्षपात अज्ञात धर्म कुलकर का, केवल प्रकाश का प्रसर काम दिनकर का। ऋ.पृ.-21. सामान्यतः कवियों द्वारा 'अज्ञान' के लिए 'तमस' शब्द का प्रयोग होता [174]