________________ (1) चाक्षुष बिम्ब : काव्यात्मक बिम्बों में चाक्षुष बिम्बों की संख्या सबसे अधिक रहती है क्योंकि चक्षु इन्द्रिय के ज्ञान का मुख्य साधन है। अन्य संवेदनाओं से संबंधित वस्तुओं में भी कुछ न कुछ दृश्यता का गुण विद्यमान रहता है। इसलिए काव्य में दृश्य बिम्बों की प्रचुरता स्वाभाविक है। 'ऋषभायण' में चाक्षुष बिम्बों की प्रबलता एवं बहुलता है। मनुष्य और वस्तुओं के संबंध में कवि का ज्ञान क्षेत्र जितना विस्तृत है उतने ही विविध उनके दृश्य बिम्ब हैं। कवि सृष्टि की अनेक वस्तुओं, व्यापारों, घटनाओं, स्थलों से प्रभावित हुआ है। जिससे उनका बिम्बांकन इतने श्रेष्ठ रूप में हुआ है जिसकी अनुभूति पाठक को साकार रूप में होती है। दृश्य बिम्ब के अन्तर्गत रूप, रंग, आकृति, गति आदि के आधार पर 'बिम्बों का दृश्यांकन' किया जाता है। आचार्य महाप्रज्ञ ने नट जल, किनारा, लता, नक्षत्र, अंधकार, प्रकाश, बीज, सूर्य, माला, बादल, दुपहरी, कली, सागर, गगरी, दीप, वैडूर्य, तिलक, विद्युत, मुकुर, चाँद-चाँदनी, चकोर, कमल, वृक्ष, धारा, पर्यक, कुहरा, पत्थर, नदी, अंतरिक्ष, पृथ्वी, पाताल, वर्षा, गज, हिमगिरि आदि का सफल एवं मनोहारी बिम्ब प्रस्तुत किया है। सूक्ष्म से सूक्ष्म भावों की अभिव्यक्ति ऐसे सहज एवम् बोधमय बिम्बों से की गयी है जहाँ गंभीर अर्थो का उद्घाटन बहुत ही सहजता से होता जाता है। इस प्रकार ऋषभायण में घटना, परिस्थिति, वातावरण तथा स्थितियों के द्वारा भावों का ऐसा सजीव चित्रण हुआ है कि पाठक के नेत्रों के समक्ष संपूर्ण दृश्य झूलने लगता है। जीव की संरचना अद्भुत है। क्षिति, जल, पावक, गगन और समीर इन पाँच तत्वों के द्वारा प्राणी का निर्माण होता है, यह प्रकृति की सतत् प्रक्रिया है। जीव का शरीर इससे ही आबद्ध है। विविध पुदगलों से निर्मित जीव की सत्ता शरीर पर ही केन्द्रित है, यानी 'जीव' की अभिव्यक्ति का माध्यम है शरीर। शरीर व्यक्त है और जीव (प्राण) अव्यक्त। शरीर की सम्पूर्ण जीवन्तता का कारण है 'प्राण'। प्राण, आत्मा, चैतन्यमय है जो शरीर के स्पंदन का कारण है। सामान्य अर्थ में 'जीव' शब्द का प्रयोग प्राणी अथवा जीवधारियों के लिए किया जाता है, जिसमें स्पन्दन प्राण सत्ता के कारण ही हो पाता है। भाव के इस सूक्ष्म रूप का दृश्यांकन 'तीर' से आबद्ध 'नीर' से किया गया है। 'तीर' में मनोरमता तब रहती है, जब उसका सम्पर्क बराबर [1721