________________ तृतीय अध्याय ऋषभायण में ऐन्द्रिक बिम्ब ऐन्द्रिक बिम्ब का स्वरूप एवं प्रकार इंद्रियों का कार्यक्षेत्र व्यापक है। मूल रूप से इन्द्रियों का विभाजन दो रूपों में किया गया है, ज्ञानेन्द्रिय और कर्मेन्द्रिय। किसी भी वस्तु की स्थिति का अनुभव ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा ही सम्भव हो पाता है। वस्तुतः ऐन्द्रियता का आशय उन प्रत्यक्ष अनुभूतियों से है, जो किसी न किसी संवेदना के आधार पर ग्राह्य होती हैं। विभिन्न ज्ञानेन्द्रियाँ चक्षु, कर्ण, नासिका, रसना, त्वचा का विषय क्रमशः दृश्य, नाद, गंध, आस्वाद्य एवं स्पर्श्य है, जिसके आधार पर बिम्बों का निर्माण होता है। कवि की जितनी भी संवेदनात्मक अवस्थाएँ होती है, वे इंद्रियों के द्वारा ही अभिव्यक्त होती हैं। इसीलिए ऐन्द्रियता को बिम्ब का अनिवार्य तत्व माना गया है। कवि में संवेदनात्मकता जितनी गहरी एवम् वैविध्यपूर्ण होगी उसका बिम्बाकंन भी उतना ही स्पष्ट एवं सहज होगा। ऋषभायण में संवेदनाओं के आधार पर ऐन्द्रिक बिम्बों का विभाजन निम्नलिखित रूपों में किया गया है : (1) चाक्षुष बिम्ब श्रोत बिम्ब घ्राण बिम्ब रस बिम्ब स्पर्श बिम्ब (त्वग्) एकल ऐन्द्रिक बिम्ब संश्लिष्ट ऐन्द्रिक बिम्ब गतिक ऐन्द्रिक बिम्ब (7) . स्थित ऐन्द्रिक बिम्ब 11711