________________ अधिक बल देते थे। तीसरे सप्तक तक बिम्ब का पूर्ण प्रभुत्व कविता पर दिखाई देने लगा। बिम्ब के व्यापीकरण के कारण डॉ. केदारनाथ सिंह ने लिखा कि 'मैं बिम्ब निर्माण की प्रक्रिया पर जोर इसलिए दे रहा हूँ कि आज काव्य के मूल्यांकन का प्रतिमान लगभग वही मान लिया गया है।"(162) बिम्ब रचना प्रक्रिया का एक अंग है जो हमारी ऐन्द्रिक अनुभूति को समृद्ध और समृद्धतर करता है। अज्ञेय प्रयोगवाद के पुरस्कर्ता है। उन्होंने 'तारसप्तक' का संपादन किया है वस्तुतः नयी कविता प्रयोगवादी कविता का ही एक परवर्ती रूप है। राम विलास शर्मा, गिरिजा शंकर माथुर, नेमिचंद्र जैन, प्रभाकर माचवे, मुक्ति बोध, भारत भूषण अग्रवाल, नरेश मेहता, भवानी प्रसाद मिश्र, शकुन्त माथुर, हरिव्यास, शमशेर बहादुर सिंह, रघुवीर सहाय, धर्मवीर भारती, लक्ष्मी कांत वर्मा, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, दुष्यंत कुमार, केदारनाथ सिंह, विजय देवनारायण साही आदि इस धारा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। शिल्प की दृष्टि से नये कवियों का प्रयोग अनूठा है। दृश्यात्मकता और प्रकृति का बिम्बात्मक चित्रण कविता को पारदर्शी बनाते हैं। पर्वत, नदी, पेड़ प्रकृति के ये महत्वपूर्ण उपादान कवि को संवेदित कर देते हैं, देखिए, अज्ञेय की दृष्टि कितनी सूक्ष्म और प्रभावशील है - आज मैंने पर्वत को नई आँख से देखा आज मैंने नदी को नई आँख से देखा आज मैंने पेड को नई आँख से देखा। (153) उक्त उदाहरण में पर्वत, नदी, पेड़ का सहज बिम्ब प्रस्तुत हुआ है। मर्म 'आंख' से देखने में नहीं है, 'नई आँख' से देखने में है। नई आँख यानी नवीन रूप, नवीन दृष्टिकोण। प्रायः कवियों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से शाम, प्रात, समुद्र, दिन, रात, सूर्य, आकाश, क्षितिज, धूम, लहरें, किरणें, बादल आदि की बिम्बात्मक अभिव्यक्ति की है। 'उषा' कविता में डॉ. शमशेर बहादुर सिंह ने भोर से लेकर सूर्योदय तक का वर्णन किया है। आकाश की नीलिमा के विस्तार का उद्घाटन कवि नीले शंख से करता हुआ भोर और प्रात की मांगलिक ध्वन्यात्मकता को भी व्यक्त करता है- 'प्रात नभ था। बहुत नीला शंख जैसे। भोर का नभ।' कवि ने प्रातः कालीन नीलिमा के [143]