________________ शुक्ल के बिम्ब संबंधी विचारों की पृष्ठभूमि में कहीं न कहीं छायावादी कवियों की भी मान्यताएँ थी। क्योंकि 'आलोचना का कोई भी नया सिद्धांत तत्कालीन कृति साहित्य से सर्वथा निरपेक्ष नहीं हो सकता। (151) छायावादी कवियों ने शब्द, वर्ण, समानुभूतिक, व्यंजना प्रवण समासिक प्रसृत एवं ऐन्द्रिक बिम्बों की योजना की है। भाव बिम्बों की छटा तो निराली ही दिखती है। प्रकृति जन्य भावचित्र इतने जीवंत रूप में प्रयुक्त हुए हैं, जैसे वे आंखों के समक्ष अपनी क्रियाएँ कर रहे हों। पंत ने बादल के गगन विहार का बड़ा ही सुन्दर भावचित्र प्रस्तुत किया है, जिसमें बादल की तीव्र गति को चौकड़ी भरते मृग के बिम्ब से, उसकी गंभीरता एवम् गर्जना को मदमस्त झूमते हाथी के बिम्ब से तथा बादल के क्षीण विस्तार को घास चरते सजग 'शशक' के बिम्ब से अभिव्यक्ति दी है, और यदि बादलों के स्वभाव पर विचार करें तो उसमें मृग, गज, शशक का चित्र उभरता हुआ दिखाई देता है। कभी चौकड़ी भरते मृग से भू पर चरण नहीं धरते मत्त मत्तंगज कभी झूमते सजग शशक नभ को चरते। महादेवी ने अपनी सूक्ष्म रहस्यानुभूति के लिए मनोरम बिम्ब दिये हैं - कैसे कहती हो सपना है, अलि ! उस मूक मिलन की बात भरे हुए अब तक फूलों में मेरे आंसू उनके हास | - नीहार इसी प्रकार प्रसाद की कामायनी आँसू, लहर, निराला की 'राम की शक्ति पूजा', अनामिका पंत की नौका विहार, ग्राम्या, पल्लविनी कविताओं में विविध सशक्त बिम्बों की सृष्टि हुई है। ___ कविता के क्षेत्र में बिम्ब प्रणाली पर वास्तविक रूप से कार्यारम्भ नये कवियों के द्वारा हुआ है जिसकी प्रारम्भिक झलक 'तार सप्तक' में मिल जाती है। प्रयोगवाद कवि साहित्यिक क्षेत्र में नवीनता के हिमायती थे इसलिए परंपरागत बिम्बों की तुलना में 'ऐन्द्रिय' और 'आवेगाश्रित' बिम्बों के काव्यात्मक महत्व पर [142]