________________ की भाषा में यह चित्रात्मकता बिम्ब मुहावरों एवं लोकोक्तियों में देखी जा सकती है।85) कु. कैरोलिन स्पर्जियन के अनुसार 'काव्य बिम्ब एक छोटा सा शब्द चित्र है, जिसे कोई कवि या गद्य लेखक अपने भावों, विचारों को अभिव्यक्त करता है, उन्हें सुंदरता प्रदान करता है, और रमणीयता के साथ चित्रित करता है.... अपने भावों एवं विचारों की गहनता एवं अधिकता को जिसको उसने अन किया है, जिसके विषय में उसने सोचा था, विचारा है - हम तक पहुंचाने के लिए संप्रेषणीय बनाने के लिए कवि इसी शब्द चित्र का आश्रय लेता है / (66) पर्वतीय प्रदेश में पावस ऋतु की चित्रमयता यहाँ दृष्टव्य है : धंस गये धरा में समय शाल, उठ रहा धुआँ जल गया ताल यो जदल यान में विचर-विचर था इन्द्र खेलता इन्द्रजाल।। --- पंत उक्त कविता में मूसलाधार वृष्टि से शालवृक्ष का न दिखाई देना, तथा समय का पता न चलना शब्द रेखा से दृश्य का चित्रांकन किया गया है, कोई भी चित्रकार इस शब्द रूपांकन से आकाश में मंडित तथा तीव्रता से दौड़ रहे बादलों का चित्रांकन कर सकता है। (2) बिम्ब और भाव : भाव कविता का प्रमुख विधायक तत्व है। कवि की अनुभूति से सम्पृक्त होने के कारण शोक और भय जैसे दुखात्मक भाव भी सुखात्मक भाव के समान आह्लादकारी बन जाते हैं। भाव के कारण ही कविता जीवन जगत् से रागात्मक स्तर पर जुड़ती है / (67) भाव संक्रामक होते हैं, इनमें क्षिप्रता होती है। ये कवि के हृदय में स्थित रहते हैं और बिम्ब योजना द्वारा पाठक तक पहुंचते हैं। इस रूप में भाव ही काव्य का अर्थ और इति है। भाव की अनुभूति से ही कवि कर्म का प्रारंभ होता है। उसी भाव की अनुभूति श्रोता या पाठक में जागृत कर देना कवि का अंतिम लक्ष्य है |(88) बिम्ब के पृष्ठभूमि में कवि की भावानुभूति ही रहती है जो बिना किसी आग्रह अथवा पूर्वाग्रह के पाठक अथवा श्रोता के हृदय में साधारणीकरण की प्रक्रिया से बिम्बित होती है। [122]