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________________ बिम्ब और काव्य काव्य जीवन की व्याख्या है। जीवन का विस्तार अनन्त सुखात्मक दुखात्मक सम्भावनाओं, समस्याओं के आलोक में प्रखर और मधुर है। जहाँ कवि की कल्पना हृदय से जुड़ी वहीं रागमयी बन बहने लगी, और जहाँ बुद्धि से जुड़ी वहीं चिंतन की अजस्त्र धारा प्रवाहित करने लगी। हृदय से राग और बुद्धि से विराग ये दोनों लौकिक एवं अलौकिक जगत की व्याख्या करते हैं किन्तु हृदय से जुड़ी रागमयी अनुभूति काव्य को सरस बना देती है। भारतीय एवम् पाश्चात्य विद्वानों ने अपनी-अपनी दृष्टि से काव्य को परिभाषित करने का प्रयास किया है, सभी के अपने-अपने तर्क हैं। अपनी-अपनी व्याख्या हैं। लगता है विद्वानों की इतनी व्याख्या के बावजूद कविता अव्याख्यायित ही रह गई। वामन ने 'रीति' की व्याख्या करते हुए लिखा है कि 'विशिष्ट पद रचना रीतिः (6) अर्थात् विशेष प्रकार की शब्द रचना रीति है। आचार्य भामह ने 'तद्दौषौ शब्दार्थों सगुणावनलंकृति पुनः क्वापि 7) अर्थात् निर्दोष और गुणों से युक्त शब्दार्थ काव्य है जिसमें अलंकार हो या न हो। आचार्य विश्वनाथ के अनुसार रसात्मकं वाक्य काव्यम् / / 4) अर्थात् रसात्मक वाक्य ही काव्य है। पंडितराज जगन्नाथ ने रमणीय अर्थ का प्रतिपादन करने वाले शब्द को काव्य कहा है| (79) आचार्य शुक्ल रसवतधारणा के आलोक में लिखते हैं कि 'जिस प्रकार आत्मा की मुक्तावस्था ज्ञानदशा कहलाती है, उसी प्रकार हृदय की यह मुक्तावस्था रस दशा कहलाती है। हृदय की इसी मुक्ति साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है, उसे कविता कहते है / (80) जयशंकर प्रसाद ने काव्य को आत्मा की संकल्पनात्मक अनुभूति माना है, जिसका सम्बन्ध, विश्लेषण, विकल्प या विज्ञान से नहीं है। वह एक श्रेयमयी प्रेय रचनात्मक धारा है |(1) उक्त भारतीय विचारकों के विचार कहीं न कहीं मत विशेष के आग्रह में सिमट से गये हैं। कविता किसी सिद्धांत के वशीभूत नहीं है। कविता के बाद ही सिद्धान्त का जन्म हुआ, इसलिए किसी सिद्धान्त के आलोक में कविता की व्याख्या करना उचित नहीं, इसीलिए आचार्य रामचंद्र शुक्ल और जयशंकर प्रसाद की परिभाषा बहुत दूर तक जीवन के रहस्य को | 120
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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