________________
अवस्था में आत्मानुभूति के प्रकाशन का पूरा अवसर रचयिता को नहीं मिल सकेगा, उसकी रचना अधूरी और अपंग रहेगी। (62) आचार्य शुक्ल और आचार्य बाजपेयी के मन्तव्य से यह बात स्पष्ट है कि कविता का अंतिम लक्ष्य मनोरंजन नहीं है, किन्तु कवि द्वारा उसकी अवहेलना भी नहीं की जा सकती। मनोरंजन भी जीवन का एक हिस्सा है किन्तु अंतिम लक्ष्य नहीं।
डॉ. नगेन्द्र – काव्य का प्रयोजन कवि की आत्माभिव्यक्ति की भावना मानते हैं। उनके अनुसार 'सहित्य का प्रयोजन आत्माभिव्यक्ति है। कवि या लेखक के हृदय में जो भाव या विचार उठते हैं उन्हें वह प्रकाशित करना चाहता है । (63) इस प्रकार आत्म-प्रकाशन की क्षमता को अवसर देना ही साहित्य का मूल प्रयोजन है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी साहित्य का प्रयोजन विशुद्ध मानव जीवन से जोड़ते हुए लिखते हैं कि 'मैं साहित्य को मनुष्य की दृष्टि से देखने का पक्षपाती हूँ। जो वाग्जाल मनुष्य की दुर्गति, हीनता और परामुखापेक्षिता से बचा न सके, जो उसकी आत्मा को तेजोदीप्त न बना सके, जो उसके हृदय को पर दुःखकातर और संवेदनशील न बना सके, उसे साहित्य कहने में मुझे संकोच होता है। (64)
इस संबंध में बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' का कथन है कि 'मेरे निकट सत् साहित्य का एक ही मापदण्ड है, वह यह है कि किस सीमा तक कोई साहित्यिक कृति मानव को उच्चतर, सुन्दरतम एवं परिष्कृत बनाती है। (65)
गुलाबराय भी काव्य का प्रयोजन आत्मानुभूति मानते हैं। उनके अनुसार 'भारतीय दृष्टि में आत्मा का अर्थ संकुचित व्यक्तित्व नहीं है। विस्तार ही में आत्मा की पूर्णता है। लोकहित भी एकात्मवाद की दृढ़ आधारशिला पर खड़ा हो सकता है। यश, अर्थ, यौन सम्बन्ध, लोकहित सभी आत्महित के नीचे या ऊँचे रूप हैं। .... इन सब प्रयोजनों में वही उत्तम हैं, जो आत्मा की व्यापक से व्यापक और अधिक से अधिक सम्पन्न अनुभूति में सहायक हो, इसी से लोकहित का मान है |66)
___ आचार्य तुलसी के अभिमत से 'साहित्य का सही लक्ष्य है आत्म साधना की ज्योति से जाज्वल्यमान वाणी द्वारा जन-जन को प्रकाश देना । (67) इस प्रकार आचार्य तुलसी 'आत्मसाधना' के परिप्रेक्ष्य में जनकल्याण की भावना को ही साहित्य
92]