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________________ दृष्टि का विषय अर्थात् वे नव तत्त्व ही परमपारिणामिकभाव के बने हुए होने से अर्थात् ध्रुवरूप शुद्धात्मा ही उन नव तत्त्वरूप परिणमित हुआ होने से वह उन नौ तत्त्वों में ही छुपा हुआ है अर्थात् उन नौ तत्त्वों में से अशुद्धि को गौण करते ही दृष्टि के विषयरूप शुद्धात्मा हाजिर ही है। गाथा १८९-अन्वयार्थ-'पुण्य और पाप सहित इन सात तत्त्वों को ही नौ पदार्थ कहने में आया है, तथा भूतार्थनय से आश्रय किये हुए सम्यग्दर्शन के वास्तविक विषय हैं।' अर्थात् दृष्टि के विषयरूप हैं। भावार्थ - “पूर्व में गाथा १८६ में कहा था कि नवतत्त्वों से शुद्धात्मा कोई अलग पदार्थ नहीं है, परन्तु उन नौ तत्त्वों सम्बन्धी विकारों को छोड़ने पर (गौण करने पर-कम करने पर) वे नवतत्त्व ही शुद्ध है (परमपारिणामिकभावरूप शुद्धात्मा है) नव तत्त्वों सम्बन्धी विकारों को किस प्रकार छोड़ा जाये, उसका उपाय इस गाथा में दर्शाया है कि भूतार्थनय द्वारा उन नव तत्त्वों का आश्रय करना वह सम्यग्दर्शन का विषय है (दृष्टि का विषय है) श्री समयसार की गाथा ११ में भी कहा है कि 'व्यवहारनय अभूतार्थ है तथा शुद्धनय भूतार्थ है ऐसा ऋषिश्वरों ने (भगवान ने) दर्शाया है, जो जीव भूतार्थ का आश्रय करता है, वह निश्चय से सम्यग्दृष्टि है।' तत्पश्चात् इसी शास्त्र की गाथा १३ में कहा है कि 'भूतार्थनय से जाने हुए जीव, अजीव, पुण्य-पाप, आस्रवसंवर-निर्जरा-बन्ध और मोक्ष ये नव तत्त्व सम्यक्त्व हैं।' तथा इस गाथा की टीका में कहा है कि इन नव तत्त्वों में भूतार्थनय से एक जीव ही प्रकाशमान है, ऐसे उस एकपने को प्रकाशित करते शुद्धनय द्वारा अनुभव में आता है और जो यह अनुभूति, वह आत्मख्याति ही है तथा आत्मख्याति वह सम्यग्दर्शन है। इस गाथा में 'भूतार्थनय से आश्रय किये हए नव पदार्थसम्यग्दर्शन का वास्तविक विषय है। ऐसा कहा है परन्तु वह मात्र कथन पद्धति का भेद है-आशय भेद नहीं। यहाँ भूतार्थनय से आश्रय किये हुए नव पदार्थ सम्यग्दर्शन का विषय है ऐसा कहने का कारण यह है कि शंकाकार ने प्रथम गाथा १४२ से १४९ में नव पदार्थ बन नहीं सकते ऐसा कहा था और तत्पश्चात् गाथा १७९-१८० में इन नौ पदार्थों को आत्मा से सर्वथा भिन्न होना कहा था, ये दोनों कथन दोषयुक्त हैं ऐसा दृढ़ करने के लिये ऐसी पद्धति यहाँ ग्रहण की है। ___ आगे गाथा २१८-२१९ में शंकाकार फिर से कहता है कि जब नौ तत्त्वों में सम्यग्दृष्टि को निश्चय से मात्र आत्मा की उपलब्धि होती है और वही शुद्ध उपलब्धि है तो फिर सम्यग्दर्शन का विषय-नौ पदार्थ किस प्रकार बन सकेंगे? उसका समाधान गाथा २२० से २२३ में ऐसा किया है कि मिथ्यादृष्टि और सम्यग्दृष्टि दोनों को नौ पदार्थों का अनुभव तो है परन्तु मिथ्यादृष्टि को वह (अनुभव) विशेषरूप (अर्थात् विभावभावरूप पर्यायरूप) तथा सम्यग्दृष्टि को वह (अनुभव)
SR No.009386
Book TitleDrushti ka Vishay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh M Sheth
PublisherShailesh P Shah
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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