________________ मैत्री भावना - सर्व जीवों के प्रति मैत्री चिन्तवन करना, मेरा कोई दुश्मन ही नहीं ऐसा चिन्तवन करना, सर्व जीवों का हित चाहना। प्रमोद भावना - उपकारी तथा गुणी जीवों के प्रति, गुण के प्रति, वीतरागधर्म के प्रति प्रमोदभाव लाना। करुणा भावना - अधर्मी जीवों के प्रति, विपरीत धर्मी जीवों के प्रति, अनार्य जीवों के प्रति करुणाभाव रखना। मध्यस्थ भावना - विरोधियों के प्रति मध्यस्थभाव रखना। श्रावकधर्म प्रवचन पृष्ठ-४५ यहाँ श्रावक को मद्य-माँस इत्यादि का त्याग होने का कहा है, परन्तु यह ध्यान रखना कि पहली भूमिका में साधारण जिज्ञासु को भी मद्य-माँस-मधु-रात्रिभोजन इत्यादि तीव्र पाप के स्थानों का तो त्याग ही होता है, और श्रावक को तो प्रतिज्ञापूर्वक-नियम से उनका त्याग होता है। पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामी के हृदयोद्गार - मुखपृष्ठ की समझ - अपने जीवन में सम्यग्दर्शन का सूर्योदय हो और उसके फलरूप अव्याबाध सुखस्वरूप सिद्ध अवस्था की प्राप्ति हो, यही भावना।