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प्रस्तावना
XII
तत्पश्चात् अप्रतिबुद्ध को समझाने के उद्देश्य से लिखी गयी २३ - २५ गाथाओं में इसी भेदविज्ञान की चर्चा की है, जो मूलत: पठनीय है।
आचार्य पूज्यपादस्वामी तो कहते हैं कि
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जीव जुदा पुद्गल जुदा यही तत्त्व का सार ।
अन्य कुछ व्याख्यान सब याही का विस्तार ।। ५० ।।
(इष्टोपदेश) तात्पर्य यह है कि यदि द्रव्य-गुण- पर्याय की विस्तृत समझ न हो; एवं उस सन्दर्भ में अभिप्राय की विपरीतता न हो तो स्व-पर भेदविज्ञान करके भी सम्यग्दर्शन प्राप्त किया जा सकता है।
वर्तमान स्वाध्यायी वर्ग में द्रव्य-गुण-पर्याय के सम्बन्ध में प्रचलित अनेक भ्रान्तियों के प्रक्षालन का सफल प्रयास लेखक द्वारा जिनागम के परिप्रेक्ष्य में (१) द्रव्य - गुण व्यवस्था (२) द्रव्य - पर्याय व्यवस्था (३) उत्पाद - व्यय - ध्रौव्यरूप व्यवस्था नामक प्रकरण में किया गया है, जिसका सारभूत तात्पर्य लेखक के ही शब्दों में इस प्रकार है
एक अखण्ड द्रव्य में रही हुई अनन्त विशेषताओं को उस द्रव्य के अनन्तानन्त गुणों के रूप में वर्णन किया है, बतलाया है। उन सर्व विशेषताओं के समूह को द्रव्य (वस्तु) रूप से बतलाया है। वह वस्तु (द्रव्य) तो अभेद-एक ही है परन्तु उसकी विशेषताओं को दर्शाने के लिये ही उसमें गुणभेद किये हैं, अन्यथा वहाँ कोई क्षेत्रभेदरूप गुणभेद है ही नहीं... इसलिए उसे कथंचित् भेदअभेदरूप बतलाया है... वहाँ वस्तु में कोई वास्तविक भेद नहीं है इस अपेक्षा से अभेद ही कहा जाता है। अभेदन को ही कार्यकारी बतलाया है और भेदनय मात्र वस्तु का स्वरूप समझाने के लिये कहा गया भेदरूप व्यवहारमात्र ही है, क्योंकि निश्चय से वस्तु अभेद है। तथा
गुणों के समूहरूप अभेद द्रव्य का जो वर्तमान है अर्थात् उसकी जो वर्तमान अवस्था है (परिणमन है) उसे ही उस द्रव्य की पर्याय कहा जाता है। और उस अभेद पर्याय में ही विशेषताओं की अपेक्षा से अर्थात् गुणों की अपेक्षा से उसमें (अभेद पर्याय में) ही भेद करके उसे गुणों की पर्याय कहा जाता है। इस कारण कहा जा सकता है कि जितना क्षेत्र द्रव्य का है, वह और उतना ही क्षेत्र गुणों का है तथा वह और उतना ही क्षेत्र पर्याय का है, इसीलिए द्रव्य - पर्याय को व्याप्य-व्यापक सम्बन्ध कहा जाता है।
जिनागम में उपलब्ध पर्याय के प्रदेशभेद सम्बन्धी कथन पर लेखक ने स्वयं प्रश्नोत्तर उठाकर जो स्पष्टीकरण किया है, वह इस प्रकार है।
यहाँ किसी को प्रश्न होता हो कि तो द्रव्य और पर्याय के प्रदेश भिन्न हैं - ऐसा किस प्रकार कहा जा सकता है।
उत्तर - भेद विवक्षा में जब एक अभेद-अखण्ड द्रव्य में भेद उत्पन्न करके समझाया जाता