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________________ सम्यग्दर्शन के लिये योग्यता 85 २४ सम्यग्दर्शन के लिये योग्यता सम्यग्दर्शन के लिये जीव की योग्यता के सन्दर्भ में बतलाते हैं, पंचाध्यायी उत्तरार्द्ध की गाथायें गाथा ७२४ अन्वयार्थ-'जो आठों मूलगुण (बड़ का टेटा, पीपल, कटुमर, ऊमर, तथा पाकर इन पाँचों क्षीर वृक्ष को उदम्बर कहते हैं, ये त्रस हिंसा के स्थान है, इनका त्याग तथा तीन 'मकार' अर्थात् मधु, माँस और मदिरा, इन तीन का नियम से त्याग वह अष्ट मूलगुण है; अथवा पाँच अणुव्रतों का पालन और मद्य, माँस, मधु का निरतिचार त्याग, वह श्रावक के अष्ट मूलगुण हैं - पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामी के श्रावकधर्म प्रकाश के प्रवचन, पृष्ठ ४५) स्वभाव से अथवा कुल परम्परा से भी आता है अर्थात् गृहस्थों को प्राप्त होता है तथा यह स्पष्ट है कि इन मूलगुणों के बिना जीवों को सर्व प्रकार के व्रत तथा सम्यक्त्व नहीं हो सकते।' अर्थात् मूलगुणों को जीव की सम्यग्दर्शन के लिये योग्यतारूप कहा है। रत्नकरण्ड श्रावकाचार श्लोक ६६ के अनुसार 'मुनियों में उत्तम गणधरादि, मद्य त्याग, मांस त्याग और मधु त्याग के साथ पाँच अणुव्रतों को गृहस्थों के आठ मूलगुण कहते हैं। ' पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामी के श्रावकधर्म प्रकाश के प्रवचन पृष्ठ ४५ पर आगे बतलाते हैं कि ‘यहाँ श्रावक को मद्य, माँस इत्यादि का त्याग होना कहा, परन्तु यह ध्यान रखना कि पहली भूमिका में साधारण जिज्ञासु को भी मद्य, माँस, मधु, रात्रिभोजन इत्यादि तीव्र पाप के स्थानों का तो त्याग ही होता ही है और श्रावक को तो प्रतिज्ञापूर्वक नियम से उनका त्याग होता है।' गाथा ७४० अन्वयार्थ-‘गृहस्थों को अपनी शक्ति अनुसार प्रतिमारूप से व्रत अथवा प्रतिमारूप से व्रत, इस प्रकार दोनों प्रकार का संयम भी पालन करना चाहिए।' अर्थात् सर्व नों को मात्र आत्मलक्ष्य से अर्थात् आत्म प्राप्ति के लिये संयम भी पालन करना चाहिए। यही बात परमात्मप्रकाश - मोक्षाधिकार गाथा ६४ में इस प्रकार बतलायी है कि 'पंच परमेष्ठी को वन्दन, अपने अशुभकर्मों की निन्दा और अपराधों की प्रायश्चित्तादि (प्रतिक्रमण ) विधि से निवृत्ति यह सब पुण्य का कारण है, मोक्ष का कारण नहीं; इसलिए पहली अवस्था में पाप दूर करने के लिये ज्ञानी पुरुष यह सब करते हैं, कराते हैं और करनेवाले को अच्छा जानते हैं तो भी निर्विकल्प शुद्धोपयोग अवस्था में ज्ञानी जीव इन तीनों में से एक भी न करे, न कराये और करनेवाले को भला भी न जाने । (क्योंकि निर्विकल्प शुद्धोपयोग अवस्था में ज्ञानी जीव को कोई विकल्प ही नहीं होते)।' अर्थात् भूमिकानुसार उपदेश होता है, अन्यथा नहीं, एकान्त से नहीं। 670
SR No.009386
Book TitleDrushti ka Vishay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh M Sheth
PublisherShailesh P Shah
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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