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शरीर (BODY) होते हैं और ऐसे एक शरीर में अर्थात् कंदमूलअनंतकाय-निगोद के एक शरीर में अनंतानंत जीव होते हैं। वे अनंतानंत अर्थात् कितने?
उत्तर : सर्व सिद्धों से अनंत-अनंतगुने। इसकारण कहा जा सकता है कि कंदमूल अर्थात् अनंतकाय के एक टुकड़े में असंख्यात x असंख्यात x असंख्यात x असंख्यात x अनंतानंत जीव होते हैं। इसलिए सुख के अर्थी जीवों को उन कंदमूल के प्रयोग से बचना चाहिए, क्योंकि वह अनंत दुःख का कारण बनने में सक्षम है अर्थात् उनके प्रयोग से अनंत पापकर्म बँधते हैं, जो कि अनंत दुःख का कारण बनने में सक्षम है। अस्तु!
आत्मार्थी को कोई भी मत-पंथ-संप्रदाय-व्यक्ति विशेष का आग्रह, हठाग्रह, कदाग्रह, पूर्वाग्रह अथवा पक्ष होना ही नहीं चाहिए, क्योंकि वह आत्मा के लिए अनंत काल की बेड़ी-समान है अर्थात् वह आत्मा को अनंत काल भटकानेवाला है। आत्मार्थी के लिये ‘अच्छा वह मेरा' और ‘सच्चा वह मेरा' होना अति आवश्यक है, जिससे वह आत्मार्थी अपनी मिथ्या मान्यताओं को छोड़कर सत्य को सरलता से ग्रहण कर सके और यही उसकी योग्यता कहलाती है।
कंदमूल के संबंध में * ३५