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दी होने की चाल
(नित्य चिंतन सहित)
जो जीव, राग-द्वेषरूप परिणमा होने पर भी, मात्र शुद्धात्मा में (द्रव्यात्मा में स्वभाव में) ही 'मैंपना' (एकत्व) करता है और उसका ही अनुभव करता है, वही जीव सम्यग्दृष्टि है अर्थात् यही सम्यग्दर्शन की विधि है।
लेखक - CA. जयेश मोहनलाल शेठ
(बोरीवली), B.COTI., FCA,