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________________ कुछ अभिप्राय विभागों का वैविध्य, उनकी अवान्तर रचनाओं का सौन्दर्य-ऐसा सौन्दर्य कि समग्र प्रासाद में कोई भी दो खंभे एक-से नहीं है, उन विभागों की व्यवस्था की मोहकता, भिन्न भिन्न प्रकार की ऊंचाईवाले गुम्बजों का समतल छतों के साथ साधा गया सुरुचिकारी मेल और प्रकार के प्रवेश के लिये की गई योजना - ये सब मिलकर अति सुन्दर प्रभाव उत्पन्न करते हैं / सही माइने में इसकी स्पर्धा कर सके ऐसी अन्य इमारत हो, ऐसा मैं नहीं जानता, कि जो खूब आह्लादकारक असर डालती हो, या जो अंदरूनी विभाग में खड़े किये गये खंभो की आकर्षक योजना के दर्शन करने का मौका देती हो। - जेम्स फरग्युसन ( भारत के विख्यात पुरात्तत्त्ववेत्ता) मंदिर में प्रवेश करते समय तो ऐसा महसूस होता है कि मानो यह सर्जन किसी ने अपने हाथों से किया हो। किन्तु अत्यंत परिश्रम से उत्कीर्ण की गई अवान्तर कृतियाँ तो, समग्र भव्य कल्पना के प्रकाश के कारणष पार्श्वभूमि में ही चली जाती हैं और जब प्रकाश के संगीत का सर्जन करनेवाले अंतरालो की अद्भूतता बराबर हू-ब-हू होकर स्थिर हो जाती है, तदनन्तर ही अवान्तर कृतियों की शिल्पकला चित्त को मोह लेती है। सचमुच, स्थापत्यकला एवं आध्यात्मिकता की यह एक आश्चर्यजनक अभिव्यक्ति है। AV - लुई क्हान ( अमरीका के विश्वमान्य स्थपति) इतिहास, शिल्पकला एवं प्रकृतिमय स्थान - इन सबके कारण राणकपुर का मंदिर सर्वश्रेष्ठ बना है। __ - एस. दासगुप्ता ( भारत सरकार के भूस्तर-विभाग के अधिकार) राणकपुर का मंदिर तो पाषाण में मूर्त्त हुई कल्पना है। - कांतिलाल टी. देसाई (गुजरात के चीफ जस्टीस) ये मंदिर तो भारतीय कला और स्थापत्य की मुद्रिका में जड़े हुए हीरे हैं। - स्वामी कृष्णानंद ( बड़ौदा) अत्यंत प्रभावति करनेवाला शिल्पकला का एसा नमूना मैने कहीं नही देखा। मायया - जे. एम. बोवन (अमरीका) राणकपुर की सुन्दरता मनुष्य की कल्पनाशीलता और समझशक्ति से भी आगे बढ़ जाती है। 1 - एस. क्लेन्सी ( अमरीका) इसका मुकाबला कर सके ऐसा विश्व में कुछ नहीं है। 00/- सेबुर (जर्मनी) मनुष्य के हाथ पत्थर में से ऐसा अद्भूत सर्जन कर सकते हैं, ऐसा मानना असंभवन लगता है। A HISM सेठ आणंदजी कल्याणजी श्रेष्ठी लालभाई दलपतभाई भवन, 25, वसंतकुंज, नवा शारदा मंदिर रोड, पालडी, अहमदाबाद - 380 007 (गुजरात) Phone:0792664 4502.26645430_-E-mail:shree [email protected]
SR No.009384
Book TitleRanakpur Mahatirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandji Kalyanji Pedhi
PublisherAnandji Kalyanji Pedhi
Publication Year
Total Pages20
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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