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________________ "श्रावक प्रतिक्रमण" ऊँ नमः सिद्देभ्यः! ऊँ नमः सिद्देभ्यः! ॐ नमः सिद्देभ्यः चिदानन्दैकरूपाय जिनाय परमात्मने। प्रमात्मप्रकाशाय नित्यं सिद्धात्मने नमः।। पाँच मिथ्यात्व, बारह अव्रत, पन्द्रह योग, पच्चीस कषाय इस प्रकार सत्तावन आस्रव का पाप लगा हो, तो वह मिथ्या होवे। नित्य निगोद सात लाख, इतर निगोद, पृथ्वी काय सात लाख, अपकाय सात लाख, अग्निकाय सात लाख, वायुकाय सात लाख, वनस्पतिकाय दस लाख, नरकगति चार लाख, तिर्यंचगति चार लाख, दैवगति चार लाख, मनुष्यगति चौदह लाख, एंव चौरासी लाख माता पक्ष में पिता पक्ष में एक सौ साढे निन्यानवें लाख कुल कोटि, सक्ष्म बादर-पर्याप्त-अपर्याप्त भेद करि जो किसी जीव की विराधना की हो, मेरा वह सब पाप मिथ्या होवे। तीन दंड, तीन शल्य, तीन गारव, तीन मूढता, चार आर्तध्यान, चार रौद्रध्यान, चार विकथा, इन सबका का पाप लगा हो, मेरा वह सब पाप मिथ्या होवे।व्रत में उपवास में अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार, अनाचार का पाप लगा हो, मेरा वह सब पाप मिथ्या होवे। पंच मिथ्यात्व, पंच स्थावर, छह त्रस-धात, सप्तव्यसन, सप्तभय, आठ मद, आठ मूलगुण, दस प्रकार के बहिरंग एंव अंतरंग चौदह प्रकार के परिग्रह संबधी पाप किया हो, मेरा वह सब पाप मिथ्या होवे। पंद्रह प्रमाद, सम्यकत्वहीन परिणाम का पाप लगा हो, हास्य-विनोददादि दुष्परिणाम का, दुराचार का पाप लगा हो, मेरा वह सब पाप मिथ्या होवे। पंद्रह प्रमाद, सम्यकत्वहीन परिणाम का पाप लगा हो, हास्य-विनोददादि दुष्परिणाम का, दुराचार का पाप लगा हो, मेरा वह सब पाप मिथ्या होवे।हिलते - बोलते, दौडते, चलते, सोते, बैठते, बिना देखे जाने-अनजाने सूक्ष्म व बादर जीवों को दआया हो, डराया हो, छेदा हो, भेदा हो, अलग किया हो, मन-वचन-कायकृत मेरा वह सब पाप मिथ्या होवे। मुनि आर्यिका, श्रावक-श्राविका का रूप चतुर्विध संध की, सच्चे देव शास्त्र गुरू की निंदा कर अविनय का पाप किया हो मेरा वह सब पाप मिथ्या होवे। निर्माल्य द्रव्य का पाप लगा हो, मेरा वह सब पाप मिथ्या होवे। दस मन का, दस वचन का, बारह काय एंव बत्तीस प्रकार का सामायिक में दोष लगा हो, पांच इन्दियों व छठे मन से जाने अनजाने जो पाप लगा हो, मेरा वह सब पाप मिथ्या होवे।मेरा किसी के साथ बैर-विरोध, राग-द्वेष, मान, माया, लोभ, निंदा नही है, समस्त जीवों के प्रति मेरा उत्तम क्षमा हैं। मेरे कर्मों के क्ष्क्षय से, मुझे समाधिमरण प्राप्त हो, मुझे चारों गतियों के दुखों से मुक्ति मिले। ऊँ शान्तिः ॐ शान्तिः ॐ शान्तिः।
SR No.009383
Book TitleMokshmarg Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain
PublisherRajesh Jain
Publication Year
Total Pages39
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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