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________________ "सार" मोक्ष सीढी दर सीढी चढ कर ही प्राप्त होता है, यह एक दिन, एक वर्ष या एक भव का कार्य नही इसमें कई भव लग सकते हैं। प्रेम का भाव राग, धृणा का भाव द्वेष, परद्रव्य मे अहंबुद्धि का भाव मोह है अतः इन तीनों को छोड कर सभी के साथ समभाव एवं एकत्व भावना से संसार में जीना चाहिए। निरंतर निज शक्ति अनुसार ज्ञान, ध्यान, और तप के द्वारा आत्मचिंतन करते हुए संवर और निर्जरा को धारण करना चाहिए।यदि कोई व्यक्ति मौजूदा परिस्थितियों में दीक्षा न भी ग्रहण कर सके तब भी निरंतर घर से ही प्रयास करना चाहिए। व्यवहार नय से गुणस्थानों की उपेक्षा संसारी जीव के चौदह भेद हैं। सिद्ध भगवान गुणस्थानों की कल्पना से रहित है। शुक्ल ध्यान, केवल ज्ञान की अंतिम सीढी है। जैनागम के अनुसार पंचम काल में शुक्ल ध्यान संभव नही हैं परन्तु इसका यह अर्थ नही कि पुरूषार्थ न किया जाए। जैनागम के अनुसार पंचम काल में मोक्ष संभव नही है परन्तु मै कहना चाहता हूँ कि ऐसा केवल भरत एंव ऐरावत क्षेत्रों के लिए है बाकी के पाँच क्षेत्रों मे स्थिति हमेशा एक जैसी रहती है यदि पुरूषार्थ किया जाय तो संभव है कि उन क्षेत्रों मे जन्म लेकर तथा फिर पुरूषार्थ करके इसी काल में मोक्ष पाया जा सकता हैं। विदेह क्षेत्र की पाँच कर्म भूमियाँ है जहाँ से हमेशा मोक्ष होता है। पद्म पुराण में भगवान राम व हनुमान के चारित्र गुणगाण हैं अतः इनको नमस्कार करना मिथ्यादृष्टि नही हैं। भक्ताम्बर जी के 24-25 वे पद में ब्रह्मा, विष्णु, महेश एंव बुद्ध की तुलना भगवान श्रृषभदेव से की गयी है अतः इनको नमस्कार करना मिथ्यादृष्टि नही हैं।सरस्वति, केवली भगवान की ध्वनि खिरने में सहायक है अतः इनको नमस्कार करना मिथ्यादृष्टि नहीं हैं। एक से अधिक धर्म को समझना तथा अपनाना ऐसा ही है जैसेकि भोजन की थाली में एक से अधिक व्यंजन का होना।अतः कौन नही चाहेगा कि उसके जीवन में भी घर्म रूपी व्यंजन एक से अधिक अन्त में अपना अनुभव बाँटना चाहता हूँ, स्वाध्याय से मेरे ज्ञान मे वृद्धि हुई, ब्रह्मर्चय एंव मौन व्रत से मांसिक एंव शारिरीक शक्ति संचित हुई और तप के लिए बल मिला, तप से आत्मा की शक्ति प्रकट हुई, सामायिक से धर्मध्यान मिला, अतः दिव्य प्रकाश एंव असीम शान्ति मिली। "अणुव्रत (महाव्रत) + दश लक्षण धर्म + रत्नत्रय + 16 भावनाएँ + समाधिमरण मोक्ष मार्ग हैं।"
SR No.009383
Book TitleMokshmarg Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain
PublisherRajesh Jain
Publication Year
Total Pages39
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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