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|"मोक्ष मार्ग एकअध्ययन
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तममा मा
ज्यातगमय:
जय जिन्नेद्र
“जिनवाणी की स्तुति” वीर हिमाचल तै निकसी गुरू गौतम के मुख कुण्ड ढरी है। मोह-महाचल भेद चली, जग की जडता-तप दूर करी है।। ज्ञान पयोनिधि माहि रली बहु भंग तरंगनि सों उछरी है। ता शुचि शारद-गंगनदी-प्रति मै अंजुरी करि शीश धरी है। या जग- मन्दिर मे अनिवार अज्ञान-अन्धेर छयो अति भारी। श्रीजिन की ध्वनि दीपशिखा सम जो नहि होत प्रकाशन हारी तो किस भांति पदारथ-पांति कहां लहते, रहते अविचारी। या विधि संत कहै धनि हैं धनि हैं जिन बैन बडे उपकारी।।
जा वाणी के ज्ञान ते, सूझे लोक अलोक। सो वाणी मस्तक नमों, सदा देत हूं धोक।।