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________________ "16 भावनाएँ" दर्शन विनय | शीलव्रतों | अभीक्ष्ण शक्ति शक्तितस्तप | साधु समाधि विशुद्धि | सम्पन्नता प्वनतिचार | ज्ञानोपयोग | | संवेग | तस्त्याग वैयावृत्य बहुश्रुत प्रवचन __ अर्हद | आचार्य भक्ति आवश्यका | मार्ग | प्रवचन परिहाणि | प्रभावना वत्सलता करण भक्ति भक्ति भक्ति दर्शन विशद्धि: - 25 दोषों से रहित अष्टअंग सहित सम्यक दर्शन को धारण करने पर 1. प्रशम (समभाव, अर्थात दुख व सुख मे समुंद्र सरीखा गम्भीर रहना, धबराना नही) 2.संवेग (धर्मानुराद, संसारिक विषयों से विरक्त हो धर्म और धर्मायतनों में प्रेम बढाना) 3. अनुकंपा (करूणा, दीन दुखी जीवों पर दया भाव करके उनकी यथाशक्ति सहायता करना) 4. आस्तिक्य (श्रद्धा, अपने निर्णय किये हुए सन्मार्ग में दृढ रहना) ये चारो गुण प्रकट हो जाते हैं। किसी प्रकार का भय अथवा चिन्ता व्याकुल नही कर सकती, सदैव धीर वीर प्रसन्नचित रहते हैं तथा किसी चीज की प्रबल इच्छा नही होती, यही दर्शन विशुद्धि नाम की प्रथम भावना हैं। |विनय सम्पन्नता:- अहंकार (मान) को त्याग कर दर्शन, ज्ञान, चरित्र, तप और उपचार इन पाँच प्रकार की विनयों का वास्तविक स्वरूप विचार कर विनयपूर्वक प्रर्वतन करना, विनय सम्पन्नता नाम की दूसरी भावना हैं। मानी पुरूष को कभी कोई विधा सिद्ध नही होती क्योंकि विधा विनय से आती है।मानी पुरूष अपनी समझ में भले ही अपने आप को बडा माने परन्तु क्या कौआ मन्दिर के शिखर पर बैठ जाने से गरूड पक्षी हो सकता हैं। अहिंसा अहिंसा शीलव्रतोंप्वनतिचार: - सत्य अचौय अणुव्रत:- पाँच अपरिग्रह ब्रह्मर्चय 429
SR No.009383
Book TitleMokshmarg Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain
PublisherRajesh Jain
Publication Year
Total Pages39
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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