SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्यकचारित्रः- ये राग द्वेष आदि कषायें जब कुछ क्षयोपशम आदि रूप होती हैं, तभी हिंसा आदि पाँच पापों के दूर होने से चारित्र होता हैं। चारित्र के सकल चारित्र एंव विकल चारित्र ऐसे दो भेद होते हैं। सम्पूर्ण परिग्रह से रहित मुनि सकल चारित्र को धारण करते हैं और परिग्रह सहित श्रावक विकल चारित्र को ग्रहण करते हैं। सकल चारित्र विकल चारित्र सकल चारित्र: - महाव्रत पाँच गुप्ति तीन एंव समिति पाँच ऐसे 13 गुण सकल चारित्र के लिए कहे गये हैं। महाव्रत पाँच गुप्ति तीन समिति पाँच महाव्रत: - हिंसा, झूठ, चोरी, मैथुन, और परिग्रह इन पाँचों पापों का मन वचन काय और कृत कारित अनुमोदना रूप नव कोटि से संपूर्ण तया त्याग कर देना महाव्रत है इन्हें साधु एंव महापुरूष ही धारण करते हैं। अर्चीय अहिंसा सत्य ब्रहमर्चय अपरिग्रह गुप्ति: - सम्यक प्रकार से अथार्त विषय, अभिलाषा एंव यश की आकांक्षा को छोडकर मन, वचन, काय की प्रवृति को रोकना मनगुप्ति, वचनगुप्ति, और कायगुप्ति कहलाती है। मनगुप्ति वचनगुप्ति कायगुप्ति समिति: - चार हाथ पृथ्वी देखकर चलना ईया समिति, हित मित प्रिय, असंदिग्ध, कषाय के अनुत्पादक, धर्म के अविरोधी वचन बोलना भाषा समिति, शुद्ध निर्दोष आहार करना ऐषणा समिति, पीछी अथवा कोमल वस्त्र से झाड-पोंछ कर उठाना रखना आदान निक्षेपण समिति, जीव रहित स्थान मे मल-मूत्र आदि का त्याग करना उत्सर्ग समिति कहलाता हैं। ईया समिति भाषा समिति ऐषणा समिति आदाननिक्षेपण उत्सर्गसमिति परीषहः- क्षुधा, पिपासा, शीत, उष्ण, दंशमशक, नग्नता, अरति, स्त्री, चर्या, निषघा, शैय्या, आक्रोश, वध, याचना, अलाभ, रोग, तृण, मल, सत्कार, पुरूस्कार, प्रज्ञा, अज्ञान, और अदर्शन ये बाईस परीषह को जो मुनि | शान्त चित से सहन करता है वह आस्रव का निरोध करके संवर को प्राप्त करता है। तपः- तप के दो भेद होते हैं। बांह्य तप और अन्तरंग तप
SR No.009383
Book TitleMokshmarg Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain
PublisherRajesh Jain
Publication Year
Total Pages39
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy