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काल
सुखमा-सुखमा | सुखमा काल | सुखमा-दुखमा दुखमा-सुखमा | दुखमा काल | दुखमा-दुखमा काल
___काल | | काल दुखमा काल यह इक्कीस हजार से पच्चीस हजार वर्ष का होता हैं। दुखमा-दुखमा काल यह इक्कीस हजार वर्ष का होता हैं। अवसर्पिणी काल में पहिले काल से लेकर छठवें काल तक आयु, शरीर बल आदि का प्रमाण घटता जाता है तथा उत्सर्पिणी काल में छठवें काल से लेकर पहिले काल तक आयु ,शरीर बल आदि का प्रमाण बढता जाता है। सम्प्रति हुंडा अवसर्पिणी काल का पाँचवा दुखमा काल चल रहा है, जिसे व्यतीत हुए अभी लगभग 2500 वर्ष हुए हैं। जीवों को मुक्ति लाभ सिर्फ चतुर्थ काल में ही होता हैं। इस पंचम काल मे किसी को भी मोक्ष नहीं होगा, परन्तु इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि आत्मोन्नित के लिए पुरुषार्थ नही किया जाय। भगवान ऋषभदेव तीसरे काल में ही मोक्ष गये। यह कार्य जैनागम के विरूद्ध हुआ, इसका कारण हुण्डावसर्पिणी काल का दोष हैं। श्रावक के आठ मूल गुण:- मदिरा, माँस एंव मधु का त्याग करके पाँच अणुव्रत का पालन करना ये आठ मूल गुण हैं जो कि श्रावक के लिए कहे गए हैं ।मूली, आलू, कंदमूल, गीली अदरक, मक्खन, नीम के पुष्प, केवडा के पुष्प, आदि मे फल थोडा तथा दोष अधिक है अतः इनको छोड देना चाहिये। जो अनुपसेव्य (सज्जन पुरूषों के सेवन योग्य नही) इन दोनों को भी छोड देना चाहिए। दिगम्बर मुनिः- दिगम्बर मुनि के पाँच भेद कहे गये हैं। __पुलाक मुनि | बकुश मुनि | कुशील मुनि | निर्ग्रन्थ मुनि । स्नातक मुनि पुलाक मुनि:- मूल गुणों में कभी-कभी दोष लग जाता हैं। बकुश मुनि:- शरीर व उपकरण बढाने की इच्छा रखते हों मूल गुणों का निद्रोष पालन करते हों। कुशील मुनि:- मूल गुणों में दोष लग जाता हैं। शरीर व उपकरण बढाने की इच्छा रखते हों निर्ग्रन्थ मुनि:-जिन्हें अन्तर्मुहूत मे केवल ज्ञान होने वाला हो। स्नातक मुनि:- केवली भगवान व्यसन:- जुआ खेलना, माँस खाना, मदिरा पान करना, शिकार खेलना, वेशया गमन करना, पर स्त्री गमन करना, चोरी करना ये सात व्यसन हैं । ये सदा सर्वदा त्याग करने योग्य हैं। अगिनः- क्रोधाग्नि, कामाग्नि और उदाराग्नि। आतमा के शत्रुः- क्रोध, मान, माया एंव लोभ ।
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