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________________ “दश लक्षण धर्म" उत्तम उत्तम उत्तम उत्तम उत्तम उत्तम | उत्तम उत्तम| उत्तम | उत्तम क्षमा मार्दव आर्जव सत्य | शौच संयम | तप त्याग आकिंचन ब्रह्मर्चय उत्तम क्षमाः- क्रोघ के क्षय होने से प्रगट होती है। क्षमावान् प्राणी कदापि किसी जीव से वैर विरोध नही करता है और न किसी को बुरा-भला कहता है। किन्तु दूसरों के द्वारा अपने उपर लगाये हुये दोषों को सुनकर अथवा आये हुवे उपद्रवों पर भी विचलित नही होता है, और उन दुख देने वाले जीवों पर उलटा करुणाभाव करके क्षमा देता है। इस प्रकार यह क्षमावान् पुरुष सदा निबैर हुआ, अपना जीवन सुख शांतिमय बनाता हैं। “मैं सबको नमन करू, सब प्रभुजी को नमन करें। मैं सब को क्षमा करू, सब मुझे क्षमा करें"।। उत्तम मार्दव:- मान के क्षय होने से होता है ।जाति, कुल, एशर्वय, विधा, तप, और रुपादि समस्त प्रकार के मदों के नाश होने से विनय भाव प्रकट होता है । प्राणी सबसे यथायोग्य मिषटवचन बोलता है | इसी से यह मिषट भावी विनयी पुरुष सर्वप्रिय होता है और किसी से द्वेष न होने से आनन्द मय जीवन यात्रा करता है। उत्तम आर्जव:- जो कुछ बात मन मे होती है, सो ही वचन से कहना और कही हुई बात को पूरी करना ऐसा पुरुष आर्जव (सरलता) को घारण करता है। इस प्रकार यह सरल परिणामी पुरुष निष्कपट होने के कारण सुखी होता है। उत्तम सत्य:- सत्यवान पुरुष सदैव जो बात जैसी है, अथवा वह जैसी उसे जानता समझता है, वैसी ही कहता है, अन्यथा नही कहता, कहे हुये वचनो को नही बदलता और न कभी किसी को हानि व दुख पहुँचाने वाले वचन बोलता है। वह तो सदैव अपने वचनो पर दृढ रहता हैं। इसके उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, ये तीनो धर्म अवश्य होते है। वह पुरुष संसार मे सम्मान व सुखो को प्राप्त होता है। उत्तम शौच:- शौचवान नर उपर्युत्त चारों धर्मो को पालता हुआ अपनी आत्मा को लोभ से बचाता है| और जो पदार्थ न्यायपूर्वक उधोग करने से उसे प्राप्त होते हैं उसी मे संतोष करता है और कभी स्वप्न मे भी परघन हरण करने के भाव नही रखता तृष्णा न होने के कारण सदा आनंद मे रहता है।
SR No.009383
Book TitleMokshmarg Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain
PublisherRajesh Jain
Publication Year
Total Pages39
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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