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अणुव्रत:
अहिंसा
सत्य
अचौय
अपरिग्रह
ब्रह्मर्चय
अहिंसा:-हिंसा का त्याग करना अहिंसा अणुव्रत का पालन है। सभी जीवो को अपना जीवन प्यारा होता है। उस जीव का धात करना अथवा कष्ट पहुँचाना ही हिंसा है। हिंसा चार प्रकार की होती है। 1. संकल्पी हिंसा 2. उधमी हिंसा 3. आरम्भी हिंसा 4. विरोघि हिंसा सत्य:- झूठ न सवंय बोलना न दूसरो से बुलवाना और ऐसा सत्य भी नही बोलना जो दूसरो को विपत्ति देने वाला हो जावे, उसे सत्य अणुव्रत कहते है। अचौय:- पर की वस्तु रखी हुई, गिरी हुई या भूली हुई हो ऐसी पर वस्तु को बिना दिए न स्वंय लेना न दूसरो को देना अर्गीय अणुव्रत कहलाता है। अपरिग्रह:- खेत (दुकान, फैक्ट्री), मकान, चांदी, सोना, धन, धान्य, दास, दासी, वस्त्र, बर्तन आदि इन दस प्रकार का परिग्रहों का परिमाण करके फिर उससे अधिक नही चाहना अपरिग्रह परिमाण अणुव्रत है। ब्रह्मर्चय:- जो पाप के डर से हर स्त्री के साथ काम भोग न स्वंय करते हैं न ऐसा दुष्चरित अन्य से ही करवाते हैं, अर्थात अपनी स्त्री मे ही संतोष रखते हैं वे कुशील त्यागी मनुष्य शील धुरंधर व्रती ब्रह्मर्चय अणुव्रत के धारी होते हैं।
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