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________________ तन्त्र अधिकार मंन्त्र,यन्त्र और तन्त्र मुनि प्रार्थना सागर ५. जो तिलक लगावे भाल पर, सभा मध्य नर जाय। मान मिले स्तुति करे, सब ही पूजें पाय॥ ६. हां जी हां जी सब करे, जो वह कहे सो सांच। एक जड़ी की जुगत से, सबै नचावे नाच॥ ७. तांबे मूल मढ़ाय के, बांधे कमर के सोय। नवमासे वह नारी के, निश्चय बेटा होय॥ ८. ऋतुवंती के रक्त से, अंजन आंजे कोय। देखत भागे सेन सब, महाभयानक होय ॥ ९. काजर हूं घिस आंजिये, मोहे सब संसार, गाली दे दे ताड़िये, तोय लग रहे लार॥ १०. फेर अंकोल के तेल में, घिस ही आंजे कोय, धन दीखे पाताल को, दिव्य दृष्टि जो होय ॥ ११. जो बाधिन के दूध में, घिस चोपड़े सब अंग। सर्वशस्त्र लागे नहीं, बढ़कर जीते जंग॥ १२. घिस के तिल के तेल में, मर्दन करे शरीर। दीखे सब संसार कू, महावीर रणधीर॥ १३. कस्तूरी सूं आंजिये, प्रातसमय ले लाय। मौत जू लेलिये सबन की, काल पुरुष दरसाय॥ १४. जो आंजे निजरक्त से, खुले रागनी राग। जो घिस पीवै दूध सू, होय सिद्ध सू भाग॥ १५. गंगा जल सू आंजिये, दोनों नेत्र जु मांही। वरसा वरसे धूल की, यामें संशय नाही॥ १६. मधु सुं अंजन आंजिये, देखे वीर वैताल। जो मंगावे वस्तु कू, ले आवे सो हाल ॥ १७. जो घिस कर लेपन करे, दूध संग सब अंग। भूत प्रेत सब यक्षगण, लगे फिरत सब संग॥ १८. घिसके रूई लगाइये, बत्ती घरे बनाये। फिर भिगोवे तेल में, दीपक देय जलाय॥ १९. करे अचभों सब नमें, घर श्मशान दरसाय। सात महल के बीच सूं, लावे पलंग उठाय॥ २०. जो घृत में घिस के करे, लेप मूत्र नर ताय। सर्व शक्ति बाढ़े अमित, मन अतिमोद उठाय॥ २१. अजा मूत्र में रगड़कर, बेंदा दे जो हाथ। करे दूर की बात वो, रहे यक्षणी साथ ॥ २२. गोरोचन के साथ घिस, लिखिये जाको नाम। होय बाकी तुरन्त, नहीं देर को काम॥ २३. लिग पत्र के अर्क सु, घिसिये केवल नाम। भूत प्रेत व डाकिनी, देखत नसे तमाम ॥ २४. स्याउ संग वा रगड़ के, तलुवे तेल लगाय। आंख मीच के पलना में, सहस कोस उड़ जाय॥ २५. जो घिस आंजे पीस के, बंदी छोड़ कहाय। बन्दी पड़े छुटे सभी, बिन किये उपाय ॥ २६. जो गुलाब संग याहिं घिस, नाड़ी लेप कराय। घड़ी चार कू जी पड़े, मुरदासहज सुभाय॥ २७. जो अलसी के तेल में, घिसिये हतश मिलाय। कोडि के लेपन करे, कंचन तन हो जाय॥ २८. जो कोई संसार में, अंधा आवे जे कोय। सात दिवस तक आंजिये, दृष्टि चौगुनी होय॥ २९. श्याम नगद सग रगड़ के,बीसों नख लिपटाय। जो नर होय कुमार जी, देख वश हो जाय॥ ३०. रक्त गुंजा यह कल्प है, सूक्ष्म कहियो बनाय। जो साधे सो सिद्ध हो, या में संशय नाय॥ (131 ) रक्तगुंजा कल्प ___ इसे रवि पुष्य नक्षत्र में, शुक्रवार को रोहिणी नक्षत्र में, कृष्ण पक्ष की अष्टमी को 512
SR No.009382
Book TitleTantra Adhikar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrarthanasagar
PublisherPrarthanasagar Foundation
Publication Year2011
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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