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गया अतिरिक्त चुम्बकीय प्रभाव कम हो जाता है। रक्त के अधिक दबाव वाले रोगियों को चुम्बक चिकित्सा का समय धीरे धीरे बढ़ाना चाहिये। दाहिनी हथेली के नीचे और गले के दाहिने भाग में धड़कन वाले स्थान पर उत्तरी ध्रुव स्पर्श करने से उच्च रक्तचाप तुरन्त कम होने लगता है। यदि इस चुम्बक को किसी तेज गति वाले वाईक्रेब्रटेर में लगाकर उपचार किया जाये तो चन्द मिनटों में उच्च रक्त चाप साध् रण हो जाता है। यदि नीचे वाला रक्तचाप भी ज्याद हो तो उपचार दोनों हथेलियों के नीचे तथा गले में धड़कन वाले भाग पर दोनों तरफ उपचार करने से चमत्कारी लाभ होता है। इसी प्रकार निम्न रक्त चाप को बायें हथेली के नीचे व गले के बायीं तरफ चुम्बक का दक्षिणी ध्रुव स्पर्श करने से रक्तचाप बढ़ने लगता है ।
पैन्क्रियाज पर चुम्बक का दक्षिणी ध्रुव लगाने से पैन्क्रियाज सक्रिय हो जाता है और मधुमेह के रोगियों को दवा और इंजेक्शन के माध्यम से इंसुलिन की आवश्यकता कम की जा सकती है। चुम्बक अत्यधिक प्रभावशाली दर्दनाशक होता है। दर्द वाले भाग पर जब तक सिर में भारीपन न हो उत्तरी ध्रुव को स्पर्श करते
Anti Clocktwise घुमाने से तुरन्त लाभ मिलता है। चुम्बक का स्पर्श करने से शरीर की हीलिंग क्षमता बहुत बढ़ जाती है। फ्रेक्चर में हड्डियों को बराबर जोड़ने के पश्चात् नियमित दक्षिणी ध्रुव के सम्पर्क में रखा जाये, तो हड्डियों के जुड़ने के समय में बहुत कमी हो जाती है। शरीर के कमजोर अंग- उपांगों पर दक्षिणी ध्रुव को स्पर्श करने से उन अंगों की कार्य क्षमता बढ़ने लगती है ।
नाभि एवं उसके नीचे के चक्रों पर अधिक क्षमता वाले तथा उससे ऊपर के चक्रों पर कम क्षमता वाले चुम्बक का प्रयोग करना चाहिये, परन्तु अनुभवी चुम्बकीय चिकित्सकों के निर्देशन में असाध्य रोगों में, अधिक क्षमता वाले चुम्बकों का उपयोग भी किया जा सकता है। जलन अथवा खुजली वाले स्थान पर चुम्बक का उत्तरी ध्रुव फेरने से शीघ्र आराम मिलता है। हाथ और पैर संबंधी रोगों में हृदय की दिशा में चुम्बक का आवश्यकतानुसार मसाज करने से रक्त में आया अवरोध दूर होने से उपचार अधिक सक्रिय हो जाता है। जैसे साईटिका के रोगियों को उत्तरी ध्रुव का मसाज करना चाहिए जबकि लकवे (पक्षाघात) के रोगी को दक्षिणी ध्रुव का मसाज करना चाहिये।
यदि शरीर के किसी भाग में गांठ हो गई हो तो, वहां पलसेटिंग चुम्बक या स्थायी चुम्बक का उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव को बारी बारी से स्पर्श द्वारा उपचार करने से गांठ का फैलाव और संकोचन होने लगता हैं और धीरे धीरे वह गांठ बिखर जाती है। मेरूदण्ड के उपचार हेतु मेरूदण्ड पर नीचे की तरफ चुम्बक का दक्षिणी ध् ध्रुव तथा ऊपर उत्तरी ध्रुव लगाना चाहिए । दक्षिणी ध्रुव पर सीधी कमर बैठने से मूलाध ार चक्र सक्रिय होता है। मल द्वार की मासपेशियां सक्रिय होती है और कब्ज दूर होती है ।
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