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नाभि आरोग्य का मूलाधार है
नाभि का महत्व __ मानव जीवन के विकास, संचालन एवम् नियंत्रण में नाभि की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। माता के पेट में गर्भाधान से लेकर जीवन के अंतिम क्षणों तक नाभि । . . केन्द्र सजग, सतर्क एवं क्रियाशील रहता है। मृत्यु के पहले हृदय की धड़कन रूक
जाने के पांच छ: मिनट बाद तक नाभि में स्पन्दन होता है। यदि कोई अनुभवी व्यक्ति किसी विधि द्वारा नाभि की प्राण ऊर्जा का संपर्क हृदय से पुनः स्थापित कर दे, तो मनुष्य की मृत्यु टल सकती है। परन्तु नाभि में स्पन्दन रूक जाने के बाद मृत्यु को नहीं टाला जा सकता । माता के गर्भ में नवजात बालक का सबसे पहले नाभि केन्द्र
ही विकसित होता है। नाभि में हमारी पैतृक ऊर्जा का संचय होता है, जो बीज से • वृक्ष की भांति हमारे सम्पूर्ण विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। गर्भस्थ बालक
में नाभि के माध्यम से ही गर्भावस्था में विकास हेतु आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति होती है।
गर्भ के बाहर आते ही सर्वप्रथम माता के शरीर को नाभि से जोड़ने वाली नली का सम्बन्ध विच्छेद करना अति आवश्यक होता है। जिससे नवजात शिशु स्वतन्त्र रूप से श्वास लेकर अपनी जीवन यात्रा प्रारम्भ कर सके। जीवन की प्रथम श्वास बहुत ही महत्वपूर्ण होती है। उस समय सौरमण्डल में गृह नक्षत्रों की जो । स्थिति होती है, उसी के आधार पर ही सारा ज्योतिष विज्ञान, उस व्यक्ति का भविष्य बतलाता है। यदि अज्ञानवश जन्म लेते ही नाभि को माता से जोड़ने वाली नली को शीघ्र न काटा जाये अथवा नली काटते ही बच्चा न रोये तो बालक विकलांग हो सकता है।
नाभि केन्द्र खिसकने के प्रभाव
यदि नाभि अपने स्थान से अन्दर की तरफ हो जाए, उस व्यक्ति का वजन . दिन प्रतिदिन घटता चला जाता है और यदि किसी कारण नाभि अपने स्थान से बाहर की तरफ हो जाती है तो शरीर का वजन न चाहते हुए भी अनावश्यक बढ़ने लगता
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