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________________ रीढ़ के घुमावदार आसनों का नित्य अभ्यास करें तो स्नायु संबंन्धी रोगों के होने की संभावनाएं बहुत कम हो जाती है। हम देखते हैं. कि घोड़ा दिन भर बोझा खींचता है, जिससे उसकी रीढ़ के मणके आपस मे चिपक जाते हैं। शाम को घोड़ा जमीन पर लेटकर मस्ती से अपने शरीर को दांयें बांयें करता है, जिससे मणकों में आया तनाव और खिंचाव दूर हो जाता है, उसकी सारी थकान दूर हो जाती है। यदि हम भी घोड़े की तरह रीढ़ की हड्डी को सुबह-शाम 'ठोडी दांयें तो घुटना बांयें' और 'घुटना दांये तो ठोड़ी बांयें घुमाना प्रारम्भ कर दें तो मेरू दण्ड में आई विकृतियां दूर हो जाती हैं । रीढ़ के घुमावदार करने के लिये सर्व प्रथम दोनों हाथ कन्धों के बराबरफैलाकर एक दम सीधा जमीन पर लेट जाना चाहिए। इस व्यायाम की विविध स्थितियाँ होती है, जिनमें पैरों की ही स्थितियां अलग अलग ढंग से बदली की जाती 1 है। गर्दन को घुमाने की एक ही तरीका और नियम होता है। जब पैरों को बांयी तरफ घुमाया जाता है तो गर्दन को दाहिनी तरफ मोड़ टोढ़ी को कंधों से स्पर्श किया जाता है। जब पैरों को दाहिनी तरफ घुमाया जाता है। तो, गर्दन को उसी ढंग से बांयीं तरफ घुमाया जाता है । प्रथम स्थिति में पैरों की दोनों एडियों के बीच पगथली के बराबर दूरी रखी जाती है तथा एक पगथली की अंगुलियों को बारी बारी से दूसरे पैर को ऐडी से स्पर्श किया जाता है तथा गर्दन को उसके विपरीत दिशा में घुमाया जाता है । दूसरी स्थिति में दोनों पगथलियों को पास-पास में रख अंगुलियों को एक बार बांयीं, फिर दाहिनी तरफ, बारी बारी से जमीन को स्पर्श किया जाता है। तथा साथ ही साथ गर्दन को विपरीत दिशा में घुमाया जाता है। ठीक इसी प्रकार तीसरी स्थिति में पगथली के ऊपर दूसरी पगथली रख कर, चौथी स्थिति में पैर के अंगूठे और उसे पास वाली अंगुलि के बीच दूसरे पैर की एडी को बारी बारी से रख, पांचवी स्थिति में दोनों घुटनों को पास पास खड़ा कर मिलाते हुये रख बारी बारी से बायें दाहिने जमीन को स्पर्श कराया जाता है। पांचवे आसन को क्वीन एक्सरसाईज (रानि आसन) भी कहते हैं । इसी प्रकार छुट्टी स्थिति में दोनों घुटनों को कुछ दूरी पर खड़ा रख पैर को बांये दाहिने घुमाते हुये एक घुटने को जमीन तथा दुसरे को पहले पैर की एडी से स्पर्श बारी बारी से कराया जाता है। इस आसान को किंग एक्सरसाईज (राजा आसन) भी कहते हैं। 22
SR No.009380
Book TitleSwadeshi Chikitsa Swavlambi aur Ahimsak Upchar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChanchalmal Choradiya
PublisherSwaraj Prakashan Samuh
Publication Year2004
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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