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________________ में अभ्यगं तथा स्वेदन करे। अभ्यगं तथा स्वेदन करने के बाद स्वस्ति वाचन, बलि आदि देकर बिना खाये हुए रोगी को जानु पर्यन्त उच्चातख्त (मेज) पर स्थित मनुष्य के गोद में पूर्व शरीर देकर उतान लिटाकर उसके कटिभाग के नीचे कपड़ा की गद्दी लगाकर तथा:कटिभाग को ऊँचा कर रोगी के जानु एवं कोहनी को संकुचित कर लम्बे वस्त्र से आश्रय पुरूष के शरीर के साथ अच्छी तरह बाँध दे और आश्वासन देकर नाभि के सभी और अभ्यगं कर वार्ड और मुष्टि द्वारा बल पूर्वत तबतक मर्दन करे जब तक अश्मरी अधोभाग में न आ जाय। इसके बाद कटे हुए नख में तैल लगाकर वायें हाथ की तर्जनी एवं मध यमा अंगुली को गुदा के भीतर से वस्ति के अनुकूल डालकर बल तथा प्रयत्न से अश्मरी को गुदा एवं मेहन के मध्य में ले आकर वस्ति को इतना दबाये जिससे उसमें वली (सिकुड़न) न रह जाय और अधिक तन भी न जाय अर्थात सम हो जाय और अश्मरी ग्रन्थि के समान अंगुलियों के दबाने से उठ जाय। पुनः सेवनी से थोड़ी दूर (जव भर दूर) इतना पाटन करे जितनी बड़ी हो। यह पाटन सेवनी के दक्षिण और अथवा वाम ओर करे। यह सावधानी रक्खे कि पाटन करते समय शस्त्र द्वारा अश्मरी टूट-फूट न जाय उसी समय तत्काल सर्प मुख यन्त्र द्वारा सम्पूर्ण अश्मरी को निकाल ले। यदि अश्मरी का चूरा . • भीतर रह जाता है तो पुनः बढ़कर अश्मरी का रूप धारण कर लेला है। नारियों की वसित के पास ही गर्भाशय रहता है अतः उसको निकलने के लिए उत्सगवान् शस्त्र द्वारा पाटन करे। अन्यथा स्त्रियों के वस्ति से. मूत्राशय में . मूत्रस्रावी व्रण हो जाता है। इसी प्रकार मूत्राशय में मूत्रस्रावी व्रण हो जाता है। इसी प्रकार मूत्राशय में क्षत हो जाने से नर का भी मूत्रस्रावी व्रण हो जात है। अश्मरी निकालने के लिए वस्ति का भेदन करने में एक ओर जो व्रण किया जाता है उसका रोपण हो जाता है। किन्तु अन्यान्य आघात आदि से वस्ति फट जाती है या दो ओर से व्रण हो जाते हैं तो उसका रोपण नहीं होता है। शस्त्र कर्म के बाद का उपचार-. विशलयमुष्णपानीयद्रोण्यां तमवगाहयेत् ।। तथा न'पूर्यतेऽसेण बस्तिः पूर्णे तु पीडयेत् । मेढान्तः क्षीररिवृक्षाम्बु मूत्रसंशुद्धये ततः।। कुर्याद् गुडस्य सौहित्यं मध्वाज्याक्तव्रणः पिबेत्। द्वौ काली सघृता कोष्णां यवागू मूत्रशोधनैः।। , . त्र्यहं दशाहं पयसा गुडाढयेनाऽल्पमोदनम्। भुज्जीतोर्ध्व फलाम्लैश्च रसैजडिलचारिणाम् ।। अर्थ : पूर्वोक्त प्रकार से अश्मरी को निकाल कर रोगी को थोड़ा उष्ण जल . 74
SR No.009378
Book TitleSwadeshi Chikitsa Part 03 Bimariyo ko Thik Karne ke Aayurvedik Nuskhe 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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