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________________ की द्रोणी में बैठा दे तथा अवगाहन कराये। ऐसा करने से वस्ति में रक्त नहीं परता। यदि रक्त भर जाय तो वट आदि क्षीरी वृक्षों के कषाय की वस्ति मूत्र मार्ग से दे। इसके बाद मूत्र शोधन के लिए गुड़ को तृप्ति होने तक खिलाये और पुन पूर्वव्रण पर मधु तथा घृत का लेप करे । भोजन में दोनों समय मूत्र शोधक गोखरू आदि द्रव्यों के पकाये जल से बनायी गयी थोड़ा गरम यवागू तीन दिन तक खिलाये। इसके बाद पुनः गुड़ मिश्रित दूध के साथ थोड़ा-थोड़ा भात दस दिन पर्यन्त भोजन कराये। इसके बाद अनार आदि फलों से अम्ल रस के साथ उचित मात्रा पूर्वक भोजन कराये । अश्मरी पाटन जन्य व्रणोपचारक्षीरिवृक्षकषायेण व्रणं प्रक्षाल्य लेपयेत् । प्रपौण्डरीकमज्जिष्ठायष्टयाहृनयनौषधैः।। व्रणाभ्यगं पचेत्तैलमेभिरेव निशान्वितैः । अर्थ : क्षीरिं वृक्षों के कषाय से व्रण का प्रक्षालन कर प्रपौण्डरीक, मजीठ, मुलेठी तथा पठानीलोध समभाग इन सब का लेप बनाकर लगाये ओर इन्हीं द्रव्यों के कषाय तथा कल्क में हलदी मिलाकर विधिवत् सिद्ध तैल का व्रण के ऊपर लेप लगाये । शस्त्रकर्म के पश्चात् कर्मदशाहं, स्वेदयेच्चैनं स्वमार्ग सप्तरात्रतः ।। मूत्रे त्वगच्छति दहेदशमरीव्रणमग्निना । स्वमार्गप्रतिपत्तौ तु स्वादुप्रायैरूपाचरेत् ।। तं बसितभिः न चारोहेद्वर्ष रूढव्रणोऽपि सः । नग - नागाऽश्व- - वृक्ष - स्त्री - रथान् नाप्सु प्लवेत च ।। अर्थ : वस्ति मार्ग को दस दिन तक स्नेहन-स्वेदन करे । स्वेदन के बाद लगभग सात दिन तक मूत्र अपने मार्ग से जाने लगे तो मधुर तथा कषायं रस वाली उत्तर वस्तियों, निरूहण तथा अनुवासन वस्तियों द्वारा उपचार करे। इस प्रकार चिकित्सा करने पर व्रण का रोपण हो जाता है। व्रण के रोपण हो जाने पर भी एक वर्ष पर्यन्त पर्वत, हाथी, घोड़ा, वृक्ष तथा रथ पर न चढ़े और मैथुन न करे एवं जल में न तैरे । शस्त्रकर्म में सावधानी मूत्रशुक्रवहौ बस्तिवृषणौ सेवनीं गुदम् । . मूत्रप्रसेकं योनिं च शस्त्रेणाऽष्टौ विवर्जयेत् । । अर्थ : शस्त्र कर्म करते समय मूत्रवाही तथा शुक्रवाही स्रोत, वस्ति तथा वृषण, सेविनी, गुदा, मूत्रप्रसेक (गविनी) तथा योनि इन आठ अंगों को क्षत नहीं होने देना चाहिए। ☐☐☐☐☐ 75 }
SR No.009378
Book TitleSwadeshi Chikitsa Part 03 Bimariyo ko Thik Karne ke Aayurvedik Nuskhe 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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