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________________ करता है। अथवा अडूसा का क्वाथ पीने से रक्त-पित्त को शान्त करता है। अडूसा की विशेषता. शर्करामधुसंयुक्तः केवलो वा शतोऽपि वा।। वृषः सद्यो जयत्यसं स ह्यस्य परमौषधम्। अर्थ : केवल अडूसा का रस या शक्कर तथा मधु मिश्रित अडूसा का रस अथवा अडूसा का क्वाथ शीघ्र ही रक्त-पित्त को शान्त करता है। यह अडूसा रक्त-पित्त का उत्तम औषध है। . रक्त पित्त शासक अभ्य तीन योग- . पडोलमालतीनिम्ब-चन्दनद्वयपद्मकम्।। . रोधो वृषस्तण्डुलीयः कृष्णामृन्दयन्तिका। शतावरी गोपकन्या काकोल्यौ मधुयष्टिका।। . . () परवल की पत्ती, मालती की पत्ती, नीम की पत्ती, रक्त चन्दन, सफेद चन्दन तथा पद्माख, (2) शाबर लोध, अडूसा, चौराई का शाक; काली मिट्टी तथा मेंहदी (3) या शतावरी, सारिवा, काकोली, क्षीर काकोली तथा मुलैठी समभाग इन तीन योगों को तीन क्वाथ मधु तथा शक्कर मिलाकर पीने से रक्त-पित्त को दूर करते हैं। रक्त-पित्त शामक दो अन्य योगरक्तपित्तहराः क्वाथस्त्रयः समधुशर्कराः। पलाशवल्कक्वाथो वा सुशीतः शर्करान्वितः।। 'पिबेद्वा मधुसर्पिा गवाश्वशकृतो रसम्। अर्थ : पलास के छाल का क्वाथ शीतल कर उसमें शक्कर मिलाकर रक्त-पित्त का रोगी पान करे। अथवा गाय का गोबर का रस मधु तथा शक्कर मिलाकर पान करें। - रक्त-पित्त शामक चन्दनादिकशाय• चन्दनोशीरजलदलाजमुदगकणायवैः। बलाजले पर्युषितैः कषायो रक्तपित्तहा। अर्थ : बरियार के शीढ कषाय में चन्दन, खस, नागरमोथा, लावा, मूंग तथा यव का चूर्ण रात को भिगोंकर तथा प्रातः छान कर पीये और प्रातः भिगोंकर और शाम को छानकर पीये। यह रक्त-पित्त को दूर करता है। अधिक रक्तस्राव में चन्दनादि प्रसादप्रसादश्वन्दनाम्भोजसेव्य मृदभृष्टलोष्टजः। . सुशीतः ससिताक्षौद्रः शोणितातिप्रवृत्तिजित्।। 44.
SR No.009377
Book TitleSwadeshi Chikitsa Part 02 Bimariyo ko Thik Karne ke Aayurvedik Nuskhe 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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