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________________ निवृत्तोऽपि ज्वरः शीघ्रं व्यापादयति दुर्बलम् ।। अर्थ : ज्वर के छूट जाने के बाद भी सहसा सभी प्रकार के गुरू, विदाही आदि अन्नों का सेवन न करे। क्योंकि ज्वर छूट जाने पर भी दुर्बल व्यक्तियों को मार डालता है। ज्वर की भयंकरता सद्यः प्राणहरो यस्मात्तस्मात्तस्य विशेषतः । तस्यां तस्यामवस्थायां तत्तत्कुर्याद्भिषग्जितम् । । अर्थ : ज्वर शीघ्र ही प्राण को हरने वाला है । इसलिए ज्वर की विभिन्न अवस्थाओं में जो जो चिकित्सा बतायी गयी है उनको उन अवस्थाओं में प्रयोग करें। ज्वर की दैवव्यपाश्रयचिकित्साऔषधयो मणयश्च सुमन्त्रा । साधुगुरूद्विजदैवतपूजाः । । प्रीतिकरा मनसो विषयाश्च । घ्नन्त्यपि विष्णुकृतं ज्वरमुग्रम् ।। इति चिकित्सास्थाने प्रथमोऽयायः । अर्थ : औषधियाँ (ज्वर नाशक औषधि), मणियाँ, ज्वर नाशक मन्त्रों का धारण साधु, गुरू, ब्राह्मण तथा देवताओं को पूजा तथा मन को प्रसन्न करने वाले पदार्थ और विष्णु सहस्र नाम का पाठ भयंकर ज्वर को दूर करते हैं । विश्लेषण : बताये गये नियमों का पालन यदि ज्वर छूटने के बाद न किया जाय तो ज्वर पुनः आ जाता है उसे पुनरावर्तक ज्वर कहते हैं। यह ज्वर लगातार कुछ दिन बना रहता है । अल्पदोष होने पर नियमों का पालन न करनेसे यह होता है। और अल्पदोष होने पर अनुचित आहार विहार के सेवनसे विषम ज्वर भी होते हैं। किन्तु विषम ज्वर के वेग छूटते तथा आते रहते हैं। पुनरावर्तक ज्वर लगातार बना रहता है। यह विषम ज्वर से इसका भेद है। विषम ज्वर छूट जाने पर यदि नियमों का पालन न किया जाय तो पुनः हो जाता है किन्तु वह अपने समय जेसे अन्य द्युस्क तृतीयक, चातुर्थक आदि के रूप में पुनः होता है । ☐☐☐☐☐ 39
SR No.009377
Book TitleSwadeshi Chikitsa Part 02 Bimariyo ko Thik Karne ke Aayurvedik Nuskhe 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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