SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लंड क्रोधजो याति कामेन शान्तिं क्रोधेन कामजः । । भयशोकोद्भवौ ताभ्यां भीशोकाभ्यां तथेतरौ । शापांथर्वणमन्त्रोत्थे विधिर्देवव्यपाश्रयः । । ते ज्वराः केवलाः पूर्व व्याप्यन्तेऽनन्तरं मलैः । तस्माद्दोषानुसारेण तेष्वाहारादि कल्पयेत् ।। न हि ज्वरोऽनुबध्नाति मारुताद्यैविना कृतः । अर्थ : औषध गन्ध से उत्पन्न ज्वर में पित्तनाशक औषधों का प्रयोग करे । विषजन्य ज्वर में विषनाशक औषधों का प्रयोग करे। क्रोध, शोथ, काम, भय आदि से उत्पन्न ज्वर में मनोनुकूल अभिलषित पदार्थों से, दोषों के अनुसार दोष शामक उपायों से तथा हित-अहित आहार विहार आदि के विचार से ज्वर की चिकित्सा करे। क्रोधजन्य ज्वर कामोत्पादक विषयों से तथा काम जन्य ज्वर क्रोधोत्पादक विषयों से शान्त होता है। भय तथा शोक से उत्पन्न ज्वर काम तथा क्रोधजन्य ज्वर. भय तथा शोक से शान्त होता है। शापजन्य ज्वर तथा अथर्ववेद में बताये हुए मन्त्रों के प्रभाव से उत्पन्न ज्वर में दैवव्यापाश्रय ( मन्त्र जपादि) विधि को करे । ये सभी ज्वर पहले शरीर में उत्पन्न होते हैं और बाद में मलों (दोषों- वात, पित्त, कफ) से सम्बन्धित होते हैं । अतः इन ज्वरों में वातादि दोषों के अनुसार आहार-विहार आदि का प्रयोग करे। वात-पित्त कफ के बिना ज्वर नहीं होता है। समृतिकालजन्य ज्वर की चिकित्सा - ज्वरकालं स्मृति चास्य हारिभिविषयैर्हरेत् । । करुणार्द्र मनः शुद्धं सर्वज्वरविनाशनम् । अर्थ : ज्वर काल का स्मरण होने से जो ज्वर उत्पन्न होता है उसे मन को हरण करने वाले विषयों से समृति को नष्ट कर ज्वर को दूर करे। करुणा से आर्द्र हृदय तथा शुद्ध मन होने से सभी ज्वर दूर होते हैं । ज्वरमुक्ति के बाद निषिद्ध कर्त्तव्य - त्यजेदाबललाभाच्च व्यायामस्नानमैथुनम् || गुर्वसाल्यविदाह्यन्नं यच्चान्यज्ज्वरकारणम् । अर्थ : ज्वरमुक्ति के बाद भी जब तक शरीर में पूर्ण बल न हो जाय तब तक व्यायाम, स्नान, मैथुन, गुरू, असात्म्य तथा विदाही आहार और अन्य जो ज्वर के कारण है उनको त्याग दे । ज्वरमुक्ति के बाद की कर्तव्य विधि न विज्वरोऽपि सहसा सर्वान्नीनो भवेत्तथा । 38
SR No.009377
Book TitleSwadeshi Chikitsa Part 02 Bimariyo ko Thik Karne ke Aayurvedik Nuskhe 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy